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जिसका शुभ कर्म प्रबल है उसी को सुख प्रचुर मिलता: स्वर्णश्रीजी म.सा

जिसका शुभ कर्म प्रबल है उसी को सुख प्रचुर मिलता: स्वर्णश्रीजी म.सा

*स्वर्णश्रीजी म.सा.* ने कहा सुख का आधार पुण्य है, अपना शुभ कर्म है| जिसका शुभ कर्म प्रबल है उसी को सुख प्रचुर मिलता है| जन्म से ही जिसे सारी सुख वस्तुऍं मिलती है यह केवल पुर्वजन्म में किए शुभकर्म का ही फल है| पुण्य का बॅलन्स बढाया है| और आज कल हम सिर्फ बँक बॅलन्स बढाने के पीछे ही लगे है|

कुछ दिन पहले एक आंदोलन निकला था *”बेटी बचाओ”* *”पाणी बचाओ”* आज म.सा. ने उसके साथ में *”पुण्य बचाओ”* का आंदोलन छेडा| जीवन के क्षण अध्यात्म और धर्म के लिए देंगे तो पुण्य बचेगा भी और बढेगा भी| टिकनेवाला सुख प्राप्त करना है मिटनेवाला नहीं| तीर्थंकर भी न टिकनेवाले सुख को ठुकरा कर तप करने के लिए चले गये, क्योंकि वही सत्य है, आदर्श है| चातुर्मास परिवर्तन की बेला है यह कहकर सुख हमारे समाधान में समाया हुआ है, जो मिला है वो हमारा अहोभाग्य है ऐसा समझेंगे तो पुण्य बढते रहेगा कहकर म.सा. ने शब्दों को विराम दिया|

*परमपूज्य सुमनप्रभाजी म. सा.*

*प्रत्येक व्यक्ति पुण्य पाना चाहता है*

*पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्य नेच्छन्ति मानवा:*

*पापस्य फलं नेच्छन्ति पापं कुर्वन्ति सादरा:*

पुण्य कर्म किये बिना पुण्यफल चाहते है और पाप कर्म करके भी पाप का फल नहीं चाहते ऐसा मनुष्य स्वभाव है|

 अदीनशत्रुराजा धारिणीदेवी की कथा आगे बढाते हुए कहा कि नारी पूर्ण तभी बनती है जब माॅं बनती है| ऐसा कहकर कहानी में आगे राणी को रात्री में स्वप्न आता है और स्वप्न में वह देखती है कि केसरी सिंह आकाश से उतर रहा है और रानी के मुॅंह के अंदर प्रवेश कर रहा है| राणी अपना यह स्वप्न राजा को बताने उठती है और राजा के समक्ष प्रस्तुत होती है| *यत्र नार्यस्तु पुज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता*

नुसार राजा आगे आकर राणी को भद्रासन देते है और बडी शालिनीता से प्रश्न करते है| राणी अपना स्वप्न राजा से बताती है और अर्थ के रूप में राजा कहते है *अर्थलाभ*, *राज्यलाभ*, और *पुत्रलाभ* है| मन ही मन राणी को हर्ष हुआ और पुत्र लाभ की कामना राणी ने की| राजा दरबार में आने के पश्चात स्वप्नशास्त्रियों को स्वप्न बताया, उन्होंने राणी के गर्भ से यशस्वी बालक जन्म लेगा, बडा नाम बनायेगा ऐसा अर्थ कहा|

 इस बातों को सविस्तर बताते हुए म.सा. ने कहा शुभ स्वप्न 72 प्रकार के होते हैं उन्में से 42 साधारण फल देने वाले और 30 महान फल देनेवाले होते है| आये हुये अच्छे स्वप्न अपात्र व्यक्ती से शेअर नहीं करने चाहिए ये समझाने के लिए मूलदेव और सोमदेव की कथा का उदाहरण देकर हमेशा पॉझिटिव्ह थिंकिंग करते रहना है तभी हम यशस्वी होंगे ऐसा कहा| ज्योतिषशास्त्र के बारे में बात करते वक्त मारसाब ने इतना भी कहा कि ज्योतिष का ज्ञान होना ही चाहिये परंतु उसी में भरोसा कर पुरुषार्थ करना ना भूले, ऐसा म.सा. का स्पष्ट मत है| पुरुषार्थ और भाग्य दोनों साथ में चलते है| पुरुषार्थ करने पर ही भाग्य भी साथ देता है| और पुण्य कमाने के लिए पुरुषार्थ ही जरुरी है

अच्छी सोच अच्छा जीवन बनाती है! ऐसे अनमोल वचन म.सा. ने कहे|

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