*पुज्य प्रर्वतक श्री प्रकाश मुनि जी मासा* → पुखरपुण्य संयुक्त महावृती जितेन्द्रियम् ।।
डॉ लिलत प्रभा जी गुरुदेव के लिये कहते है कि…वे इंद्रियों को जीतने वाले थे। पांच इंदियों पर विजय पाना कठिन है विषय जीव को भटकाता है! जिस का मन पर नियंत्रण होता है उसको सब पर नियंत्रण होता है। मन को वश में करना मुश्किल
*लघुता*- अभ्यन्तर परिग्रह हास्य, रति, अरति भय, *शौक-* विषयों के कारण जीव दुखि, जो चाहिए वह नहीं मिले तो दुःखी होता है। जो प्राप्त उपलब्ध है, अधीन है उसका सुख नहीं भोगता ! सारी दुनिया अपनी नहीं। जितना माल आपके पास है वह आपका,,, हम शोक में डुबे है, जिंदगी में आज का काम आज नहीं किया उसका दुःख रावण को था कि मुझे समुद्र के पानी को मीठा करना और स्वर्ग तक सीढ़ी लगाना। में भ्रम में था… में इस बनवासी राम पर वीजय प्राप्त नहीं कर सका इसका **शोक* है।
*जिंदगी में आप सुख ले नहीं सकते है जब भी लोगे दुःख ही लोगे ।*
आचारांग सूत्र–
*एगंत सुही मुढी वियरागी*
एकांत रूप से मुढी ही सुखी है, न सेनापति, न देवता सुखी। वितराग मुनि सुखी है। राग में उलझा मुनि सुखी नही है। भगत, भगवान की चिंता नहीं करते। ग्राहक व दुकानदार की चिंता /
सब बंधे मोह से ! जाना सबको मोक्ष है ! हमारी प्रवृत्ति ऐसी रही तो तीन काल में मोक्ष नहीं है। कर्म भुमि होगी वहाँ कर्म होगे। साधना वाले जीव मोक्ष जायेंगे
5वे आरे में मोक्ष नही क्यो? हम रागी है, हम बंधे हुए है घर से दुकानसे, स्थानक से बंधे है हम भी रागांध है। काय में.. राग मैं अंधे बने हे राग वाले की दृष्टि बंध जाती है।
धर्म में शोक आ गया पूर्वजों ने अजेन को जिनशासन से जोड़ा, तप, स्वाध्याय, जपतप मैं अग्रणी थे।
हम शासन से नहीं संप्रदाय से बंधे है तो हम दुःखी (शोक) समुह में धर्म नहीं होता, धर्म एकांत में होता है।
हम कर्म बांध रहे है जिन शासन कर्मो को तोड़ने वाला है
शोक आत्मिक परिग्रह है सबसे खतरनाक हे अंदर से छोड़ना है,, मजा ये कि हम अन्दर से बंधे और बाहर से छूट रहे है। हम भी तुमको बांधते है। जिसकी दृष्टि में बंधन हे वह नहीं सुलझेगा। हमें सुलखना है कि उलझना!! सुलझना है तो किसी से बंधो मत जो खुला है वह सुखी ।
जिसके यहाँ दूध की बंदी है वह एक ही जगह से लेगा और जो खुला है वह कहाँ से भी दुध ला सकता है। फायदा हुआ कि नुकसान, जो दुध वाले के बंधन में हे ..वो जैसा लायगा वह लेना पड़ेगा। बंधन में नहीं वह कही से भी दुध ले सकता हैं।
बंधन में हो। जो बंधे हुए है वो तुमको क्या मुक्त करेंगे ? साधु इसलिए दःखी की वह बंधे है, *वितरागी मुनि सुखि है।* किसी से बंधा नहीं जहाँ बंधन है वहाँ शोक है यह अभ्यन्तर परिग्रह बंध गये तो दुःख होगा ही। हमारी आत्मा दुःख दे रही है। सुखी भी आत्मा करती है। संसार दुःख वाला है। संसार में सुख नहीं है। मराठी कहावत है कि …
*जिसा दिसता तसा नसता मनुजत फंसता* .
जैसा दिखता है वैसा होता नहीं इसलिए फंसता हे दुःखी होता है ,शौक होता है फिर आात्र ध्यान, रोद्र ध्यान करता है और फिर तिर्यच गति में जाता है।
धर्म करना ‘नहीं’ धर्म को जीना है जीयोगे तो सुखी 1 सुधार क्या हुआ! जीने लगते हे तो दिमाग में शांति आती है। साथ घुमना, चलना सारा टेंशन वाला है
शोक (दुःख) नौकशाय यह अभ्यन्तर परिग्रह है, यह आत्रध्यान पैदा करता है जो बाधक बनता है वह रोद्ध ध्यान करता है। सुखी कौन? तुम्हारा मन जानता है सुखी है कि दुखी .. शांति, प्रसन्नता अन्दर हे प्रकट करो। पर्युषण पर्व अंदर की प्रसन्नता प्रकट करने का दिन आ रहा है तन, मन, धन से हल्का होना है परिग्रह छोडना है अपना बजट बना लो। कोई काम आने वाला नहीं क्यों उलझे हो। बेटा भाग्य ले कर आया है तुम्हारा मोह नहीं छूट रहा र है।
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