जैन साध्वी ने बताया कि धन की पेढ़ी से पहले धर्म की पेढ़ी को दें महत्व, धर्म स्थान की बढ़ाऐं ऊर्जा
Sagevaani.com @शिवपुरी ब्यूरो। जिसका जीवन धर्ममय होता है और जिसके जीवन की धूरी नैतिकता, आस्तिकता और सदाचार होती है उसे जीवन में किसी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता। राहू हों या केतू अथवा शनि आदि ग्रहों का दुष्प्रभाव उस पर नहीं पड़ता। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कमला भवन में आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्मसभा में उन्होंने समझाईश दी कि जिसने अपने जीवन में धर्म की पेढ़ी को महत्व दिया और अपनी आराधना तथा साधना से धर्म स्थानों को ऊर्जावान बनाया उसे कहीं भटकने की आवश्यकता नहीं है। धर्मसभा में साध्वी वंदना श्री जी ने इस बात पर दु:ख व्यक्त किया कि आज इंसान ने बाहरी दुनिया में काफी प्रगति कर ली है, लेकिन आंतरिक जगत में शुन्यता कायम है। यही कारण है कि इंसान का जीवन दु:खों की खान बन गया है।
प्रारंभ में साध्वी वंदना श्री जी ने हम एक बनें, नेक बनें, यहीं चाहें प्रभूजी, यहीं चाहें प्रभूजी भजन का गायन कर माहौल को आध्यात्मिकता से परिपूर्ण कर दिया। इसके बाद उन्होंने कहा कि जैन दर्शन में उसे श्रावक कहते हैं जो 12 व्रत्तों का पालन करता है।
इन ब्रत्तों का पालन करने से वह कई पापों से बच सकता है। उन्होंने कहा कि श्रावक जीवन में कुछ मर्यादा में रहना आवश्यक है। श्रावक के 12 ब्रत्तों का पालन करने वालों को पता रहता है कि अपनी संपत्ति का कैसे सदुपयोग करना है। आपस में प्रेम भाव से रहना है एक दूसरे से छोटी-छोटी बातों पर नहीं लड़ना है। उन्होंने बताया कि हमें जिनवाणी का सिर्फ श्रवण ही नहीं करना चाहिए बल्कि उसे अपने आचरण में भी उतारना चाहिए। यदि हम सच्चे श्रावक बन गए तो हमारा जीवन किसी साधू सन्याशी से कम नहीं होगा। इसके बाद साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने सदाचार की महिमा पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सदाचारी बनने के लिए हमें अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना आवयश्क है। मन और इंन्द्रियों की चंचलता से सदाचार नष्ट होता है।
उन्होंने कहा कि इंशान को चाहे वह किसी भी धर्म का पालन करता हो उसे अपने धर्म स्थान पर जाकर प्रतिदिन एक घंटा साध्वना और आराधना अवश्यक करना चाहिए। इससे धर्मक्षेत्र ऊर्जावान बनते हैं। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को माता-पिता संस्कारवान बनायें उन्हें खुद संस्कार दें तथा गुरूजनों के पास ले जायें। बचपन में दिए गए संस्कार पूरे जीवन काम आते हैं। उन्होंने कहा कि आज बच्चों को संस्कार देने के लिए मैनेजमेंट गुरूओं को बुलाने की परंपरा चल गई है जो लाखों रूपया लेते हैं, लेकिन संत और साध्वी बिना किसी शुल्क के आपको संस्कार देने के लिए धर्मस्थान पर मौजूद हैं लेकिन उनके पास जाने की आपको फुर्सत नहीं है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि जो आपकी जेब से पैसे लेता है उसकी आप पूछपरख करते रहते है। इसका सीधासा अर्थ है कि आपकी नजर में सिर्फ कीमत की कीमत है।