हुकमीचन्द सांवला ने अतीत के गौरव, जैन वीरों की बताई गाथाएँ
टीपीएफ द्वारा ‘वीर प्रभु के वीरों की गाथा’ कार्यक्रम का हुआ आयोजन
पुरानी धोबीपेट, चेन्नई 24.06.2022 ; प्रकाश, आनन्द, शक्ति की यात्रा जहां से प्रारंभ होती है, वह जैन दर्शन का आदि बिंदु है – सम्यक दर्शन। यह यात्रा श्रावकत्व, मुनित्व से होती हुई मोक्षत्व में पहुंच कर पूर्ण होती हैं। उपरोक्त विचार तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा समायोजित “वीर प्रभु के वीरों की गाथा” कार्यक्रम में साध्वी डॉ मंगलप्रज्ञा ने, श्री मरुधर केसरी जैन सभागार, पुरानी धोबीपेट, चेन्नई में कहे।
साध्वी डॉ मंगलप्रज्ञा ने जैनों के विशिष्ट योगदान को बताते हुए कहा कि जनसंख्या में अल्प होते हुए भी शिक्षा, चिकित्सा, सामाजिक सहयोग, टेक्स देने में जैन सबसे आगे है। जैन लोग नौकरी देने वाले होते हैं, व्यापार उनके जीन्स में रचा-बचा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जैन लोगों ने अपने गौरवशाली इतिहास से अपनी अलग, विशेष सॉख बनाई हैं।
साध्वी श्री ने आगे कहां कि जिसका आचरण, व्यवहार, आहार शुद्ध हो, वह जैन होता है। व्यक्ति जन्म से जैन हो सकता है, लेकिन सत् कर्म, अच्छे आचरण से ही श्रावक बनता है। हम ऋणी है अपने माता-पिता के जिन्होंने हमें जैनत्व के संस्कार दिये। अब हमें ऋण से उऋण बनने के लिए गौरवशाली जैनत्व को हमारी भावी पीढ़ी में संक्रात करना होगा, उससे उनको पल्लवित, पुष्पित करना होगा। स्वयं जागरूक रह कर, भावी पीढ़ी का नव निर्माण करना होगा।
साध्वीश्री ने विशेष प्रतिबोध देते हुए कहा कि जो जैन फूड हमारी पहचान है, गौरव है, ख्याति है, उसे सुरक्षित रखे। अपने घर को न भूलें, मूल संस्कारों से विचलित न हो। दिखावे के लिए संयम की साधना को न छोड़े। होटल, बोतल से दूर रहे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, विशेष व्यक्ता विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष हुकमचन्द सांवला ने कहा कि परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदियां बहती रहती है और मनुष्य शरीर भी परोपकार के लिए बना है। दुनिया के 193 देशों में एक मात्र भारत भूमि ही मोक्ष भूमि हैं। मैरा गौरव है कि मुझे जैन कुल मिला। संयुक्त राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् भी मानती है कि विश्व की मानवता को बचाना है, सुरक्षित रखना है, तो जैन धर्म के संयम, अहिंसा के मार्ग से ही बचाया जा सकता है।
सकारात्मकता, सृजन का विकास करती है
आपने कहा कि सकारात्मकता जहां सृजन का विकास करती है, अहिंसा को जीवित रखती है, चित्त प्रसन्न रखती है, विवेक के प्रकाश को प्रकाशित करती है, वही नकारात्मकता हिंसा को बढ़ावा देती है, दु:खों का कारण बनती है, विध्वंसकारी प्रवृत्तियों को बढ़ाती है। हमारा चिंतन, दृष्टि आहार पर टिकी है। शरीर रचना को चलाने के लिए आहार साधन है, अतः हमारा भोजन पवित्र होना चाहिए। मांस अभक्ष्य है, तो आहार कैसे हो सकता है?
जैन शब्द गुणवाचक है
आपने विशेष रूप से कहा कि महापुरुषों के चरण चिन्ह अभी तक मिटे नहीं हैं, क्योंकि हम अभी तक उन पर चले ही नहीं है। जैन शब्द गुणवाचक है, यह मात्र उच्चारण का नहीं, अपितु आचरण का विषय है।
आपने रोमाचंककारी जैन वीर पुरुषों की गाथाओं को उजागर करते हुए सभी को गौरवान्वित महसुस करवाया। आपने इतिहास के पृष्ठ उद्घाटित करते हुए कहा कि अनेकों राजा, मंत्री, भण्डारी, सेनापति जैन धर्म के अपने व्यक्तिगत धर्म का पालन करते हुए भी राज्यधर्म का कुशलता से पालन किया, निर्वाहन किया। उन्होंने सभी से आह्वान किया कि हम अपने वीरों की गाथाओं का गुणगान ही नहीं करें, अपितु स्वयं अपने जीवन आचरण में उतारें और भावी पीढ़ी में सम्पोषण करें।
इससे पूर्व अरिहंत दुधोडिया और टीम ने मंगलाचरण ‘वर्तमान को वर्धमान की आवश्यकता है’ गीत से किया। टीपीएफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ कमलेश नाहर ने टीपीएफ की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए अतिथियों का स्वागत किया। महिला मण्डल ने सामुहिक गीतिका का संगान किया। दक्षिण क्षेत्र के टीपीएफ अध्यक्ष दिनेश धोका ने विशिष्ट व्यक्ता का परिचय दिया। साध्वीवृंद ने “जैनम् जयंती शासनम्” गीत से वातावरण को संगीतमय बना दिया। इस अवसर पर हुकमचन्द सांवला, विशेष रूप से उपस्थित तमिलनाडु सरकार अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य प्रवीण टांटिया, भारतीय जैन संगठना के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेंद्र दुगड़, महावीर इंटरनेशनल के जोनल अध्यक्ष प्रकाश गोलेच्छा इत्यादि का टीपीएफ द्वारा सम्मान किया गया। कार्यक्रम का कुशल संचालन शाखा अध्यक्ष राकेश खटेड़ ने किया। आभार ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक डॉ सुरेश सखलेचा ने किया। इस अवसर पर तेरापंथ धर्म संघ की संघीय संस्थाओं के पदाधिकारियों, सदस्यों के साथ अन्य जैनेत्तर सदस्य भी उपस्थित थे।
स्वरुप चन्द दाँती
सहमंत्री
अणुव्रत समिति, चेन्नई