जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने अरिहंत परमात्मा के उपकार स्वरूप स्वयं देवेन्द्र द्वारा की गई स्तुति नमोत्थूनम की व्याख्या करते हुए कहा यह साधना अरिहंत सिद्धओं को वंदना के लिए निर्मित की गई जो संसार से मुक्त हो चुकी उन समस्त आत्माओं को जो भूत भविष्य या वर्तमान मे विधमान रहती है! ये वो महान आत्माए होती है जो जगत को ज्ञान रूपी सूर्य से प्रकाशमान करती है! आप कीचड मे कमलवत संसार से उपर उठ गए हो स्वयं तिरते हो संसार को तिराते हो स्वयं अभय मे विराजमान रह कर दुनिया के भय का निवारण करते हो। ज्ञान रूपी चक्षु के दाता हो समता के प्रदाता हो, पुरषों मे उत्तम श्रेष्ठ हो एवं सिंहवत शौर्यता के धारक हो लोक मे सर्वोत्तम हो लोक के नाथ हो लोक को उपर उठाने वाले हो ऐसे अरिहंत भगवान आपको मै वन्दन नमन करता हूँ!
वस्तुतः मानव मन जैसे शब्दों का उच्चारण करता है वैसा भाव भीतर जागृत होता है! अपशब्द के उच्चारण से पाप के विचार पैदा होते है तो धार्मिक शब्दों से पुण्य का प्रकटी करण होता है! शब्दों का अपना सत्संग होता है! एक शब्द आग सा गर्मी देता है तो एक शब्द अमृत सी शीतलता प्रदान करती है! हमें वाणी का विवेक हमेशा रखना चाहिए अपने ह्रदय तराजू मे तोल कर शब्द बोलने चाहिए! एक ने ग्लास को आधा खाली कह दिया दूसरे ने आधा भरा कह दिया एक ने जनता को मुर्ख कह दिया तो एक ने आधी आबादी पढ़ी लिखी कह दी भाव एक ही है पर शब्दों का प्रभाव अलग है! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा नमोतथुनम का जाप व महत्व को प्रकाशित किया!महामंत्री उमेश जैन ने आए हुए दर्शणार्थी भाई बहनों का स्वागत किया व सामाजिक सूचनाएं प्रदान की।