नार्थ टाउन के ए यम के यम स्थानक में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्म बंधुओ :- जिनशासन में दीक्षा का यानि ‘संयम का बहुत बड़ा महत्व है। क्योंकि संयम ही मोक्ष का मार्ग है, जीवन की अनिवार्य क्रिया है । गृहस्थ एवं साधु दोनों के लिए संयमी होना आवश्यक है। शरीर को रोगो का घर न बनाना हो तो मर्यादा करो संयमी बनो । संयम से असातावेदनीय कर्म, मोह कर्म दोनो वश में हो जाते हैं। इसलिए जिनेश्वर ने आठ कर्मो को जीवन के लिए संयम को महत्व दिया है।
एक शरीर के पालन के लिए जीवन भर आरम्भ सारम्भ करना पड़ता है। जीतने ज्यादा भोग है उतने ज्यादा रोग होते है इसलिए भगवान कहते है । भोग उपभोग की मर्यादा करो। शरीर को ज्यादा भोजन की आवश्यकता नहीं पर जिह्वा को ज्यादा की चाह रहती है इसलिए व्यक्ति बिना प्रायोजन खाता रहता है। जहाँ ज्यादा भोग की अभिलाषा रहती है वहाँ रोग टिका रहता है। संसार में तीन हर जगह, ठगे जाते है = रोगी, भोगी, लोभी, ये तीनो अपना धन, माल,जाब सब गवाँ देते ये तीनों संसार में सदैव दुखी रहते, है जिस घर में लोग ज्यादा बोलते है वहाँ क्लेश बढ़ता है। इसलिए भगवान कहते है यदि शान्ति चाहिए तो मौन रहना चाहिए।