चेन्नई. शनिवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि व तीर्थेशऋषि महाराज ने कोट्टूरपुरम, चेन्नई स्थित नवरतनमल अजीत चोरडिय़ा के निवास पर पुरुषाकार ध्यान साधना के टीचरों सहित श्रद्धालुओं को संबोधित किया। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जीवन में समस्याएं आती रहती हंैं। लेकिन वे जैसी होती हैं, वैसी नहीं बल्कि रूप बदलकर आती रहती है। इन समस्याओं के पांच कारण बताए गए हैं। पहला- हमारा अज्ञान। वास्तव में बेसिक सूचना के कारण दिक्कत होती जबकि हमें लगता है कि हमारा भाग्य खराब है। समस्या हमारे स्वयं के कारण होती है लेकिन पता नहीं चलता है और वहीं से समस्याएं शुरु होती है। पमात्मा ने कहा है कि पहले अपने अज्ञान को जानो और फिर ज्ञान की यात्रा शुरु करो। जो ज्ञान हमारे पास होता है उसी को हम पूर्ण मान लेते हैं यही हमारे पाप, अहंकार और गुस्से की जड़ है।
दूसरा- जहां इन्फोर्मेशन का यूज नहीं करना चाहिए वहां हम करते हैं। जहां भावुक, आस्था, श्रद्धा और प्रेम से रहना चाहिए वहां हम दिमाग चलाने लगते हैं। रिश्तों में दिमाग और बुद्धि चलने लग जाए तो रिश्ता भी चुभने लगता है। वहां इन्र्फोमेशन नहीं बल्कि इमोशन और प्रेम से चाहिए।
तीसरा कारण है कि इमोशन में हम परफेक्शन को भूल जाते हैं। ऐसे लोग भीष्म पितामह बन जाते हैं जो प्यार पांडवों से करते हैं और पक्ष कौरवों का लेने हैं। वहां इमोशन होता है लेकिन सहयोग नहीं। चौथा- नॉलेज, भावना, एक्शन, परफेक्शन्स हैं, लेकिन रिश्ते नकारात्मक है। तो बाकी तीनों के परिणाम उल्टे हो जाएंगे। नॉलेज और इमोशन बाद में देखें रिलेशन यदि सकारात्मक हो जाए तो बाकी तीनों पीछे-पीछे चले जाते हैं। इंद्रभूति गौतम का रिलेशन परमात्मा के साथ सकारात्मक था और गोशालक का नकारात्मक। उसी के अनुसार परिणाम आते हैं। पांचवां है पूर्व नियोजन या पूर्व तैयारी। हम कहते हैं जैसा होगा वैसा कर लेंगे और बाद में काम सही नहीं कर पाते। सभी काम पूर्व तैयारी से करेंगे तो सफलता शतप्रतिशत मिलेगी। आगम में साधु को भी पूर्व तैयारी से चलने का कहा गया है।
नवकार महामंत्र के पांच पदों में नॉलेज, इमोशन, कैरेक्टर, रिलेशन और प्लानिंग का समावेश है। ये पांचों बात जीवन में हो जाए तो पापों का नाश होता है अन्यथा जीवन में पांच प्रकार के पाप जन्मते हैं- अज्ञान, दुर्भावना, दुष्ट व्यवहार, वैर के रिश्ते और पूर्व तैयारी नहीं करने के कारण।
उन्होंने पुरुषाकार ध्यान साधना के शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि यह साधना आनेवाले समय में धीरे-धीरे वैश्विक बनने जा रही है। इसके बारे में तिलोकऋषिजी महाराज ने कहा है कि पांच प्रकार के रंगों को निहारते हुए ध्यान करें तो उसके सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं। यह रंग निहारने की साधना पुरुषाकार पराक्रम की साधना है। यह रंगों के विषय में चिंतन नहीं है बल्कि उन्हें निहारने की साधना है। चेन्नई में बिना किसी संस्था के संपोर्ट के इसके असंख्य टीचर और फाउंडर बने हैं जो समाज के असंख्य लोगों को अपने समर्पण और साधना का लाभ प्रदान कर रहे हैं। जीवन में परिवर्तन आ सकता है तो केवल ध्यान साधना से आ सकता है। हम धर्म क्रिया को महत्व देते हैं लेकिन परमात्त्मा ने धर्म ध्यान को महत्व देते हुए चार ध्यान बताए हैं- आर्तध्यान व रौद्रध्यान से संसार बढ़ता है और धर्मध्यान व शुक्लध्यान से धर्म बढ़ता है और मोक्ष मिलता है।
हम अहंकार, भोग, दु:ख, भोजन, क्रोध का ध्यान आसानी से कर सकते हैं लेकिन धर्म और शुक्लध्यान का अनुभव नहीं है तो उसका ध्यान करना है तो कहीं न कहीं अपने भूत या पास्ट से आगे बढऩा ही पड़ता है। आज यह ध्यान साधना का स्वरूप इस स्थिति में पहुंचा है तो उसका श्रेय चेन्नई के ध्यान शिक्षकों को जाता है। जिनशासन की धरोहर हम सबको मिली यह सब प्रभु की कृपा और अनुग्रह है कि अंधियारे के बीच हमें साधना का मार्ग मिला जिस पर स्वयं को भी समाधान मिलता है और दूसरों को भी समाधान देने का सामथ्र्य आता है। ध्यान जीवन का आवश्यक पाठ बनता जा रहा है। आनेवाले समय में आदमी मकान के बिना तो रह जाएगा लेकिन ध्यान के बिना नहीं रह पाएगा।
बढ़ते कंपीटिशन्स में मन की शांति नहीं रही तो व्यक्ति को बचाया नहीं जा सकेगा। प्राय: ध्यान की पद्धतियों में मात्र आभास होता है कि रिलेक्स हो गए लेकिन उससे बाहर आते ही वही पुरानी स्थिति हो जाती है, स्थायी समाधान नहीं मिलता है। पुरुषाकार साधना में बिना सोचे ध्यान होता है। मन, वचन काया से कार्य को करते हुए बंद करते हुए सकारात्मक ध्यान किया जाता है जो जीवन में परिवर्तन लाता है। जो सोचकर नहीं देख पाता है वह जिनशासन की साधना पद्धति द्वारा बिना देखे भी दिख जाता है।
यह सत्य जिनशासन से हमें मिला है उसे जन-जन तक पहुंचाएं नहीं तो हम सबसे बड़े अपराधी होंगे। संसार की जिस प्यास को हम मिटा सकते हैं उस प्यास को हमें अवश्य मिटाना चाहिए। आप इंसानियत और जिनशासन के गुनाहगार न बनें। इस साधना पद्धति को सभी तक पहुंचाएं।