नार्थ टाउन की पावन धरा पर गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्म बधुओं, जिनवानी भवी जीवों को तार के मोक्ष तक ले जाने वाली है। देशविरति ममत्व से युक्त संसार में रहने वालों का चारित्र धर्म है सर्वविरति अनासक्त भाव में रहने साधु-साध्वी का चारित्र धर्म है। जिनेश्वर ने इस सुन्दर मार्ग का निरुपण किया गृहस्थ में रहते हुए भी यदि श्रावक-श्राविका देशविरति चारित्र धर्म का पालन जागृत अवस्था में करे तो उनका मोक्ष उनके हाथ में है।
इस प्रकार दोनों चारित्र धर्म कल्याणकारी और मंगलकारी है। मोक्ष तो दुःख पूर्वक भी प्राप्त किया जा सकता है परन्तु यदि जिनेश्वर भगवान द्वारा प्ररुपित मार्ग का पालन किया जाये तो सुखपूर्वक मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। सांतवे व्रत में सागर जैसे पाप को कुण्ड जितना मर्यादित कर सकते हैं।
ज्ञानचंद कोठारी ने संचालन करते हुए बताया कि गुरुदेव के द्वारा श्रावक के बारह व्रतों पर हम सभी प्रवचन सुन रहे हैं। आज का प्रवचन उपभोग परिभोग पर था । सौंदर्य प्रसाधनों की मर्यादा करना चाहिए।