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जिनवाणी श्रवण करने वाला साधक निश्चित रूप से अपना लक्ष्य निर्धारण करेगा: जयतिलक मुनिजी

जिनवाणी श्रवण करने वाला साधक निश्चित रूप से अपना लक्ष्य निर्धारण करेगा: जयतिलक मुनिजी

गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्म बन्धुओं जिनवाणी का परम चरम लक्ष्य संसार में मोह में तल्लीन आत्मा को जाग्रत करना है जिनवाणी श्रवण करने वाली सभी आत्मा मोक्ष में गयी है और आगे भी जायेगी इसमें कोई संदेह नही है। जिनवाणी श्रवण करने वाला साधक निश्चित रूप से अपना लक्ष्य निर्धारण करेगा। यदि एक बार मोक्ष जाने की अभिलाषा उत्पन्न हो गयी तो वह अवश्य एक न एक दिन मोक्ष को अवश्य जायेगा।अनादिकाल से जन जन की प्रेरणादायक मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करने को सामर्थ्य केवल जिनवाणी में ही है। सुप्त आत्मा के मन में मोक्ष की अभिलाषा नही होती इसलिए जागृत अवस्था में श्रद्धा के साथ जिनवाणी का श्रवण करो।

चरम चक्षुओं की जागृति तो अनादिकाल से कई बार हो गई। भगवान कहते है ये जागृति जागृति नहीं है। वास्तव में जागृति मोह निद्रा से जागरण है। जिनवाणी श्रवण करने की कला न आने से ज्ञान ऊपर से निकल जाता है। इसलिए धर्म सभा में सीधे घड़े बन कर जिनवाणी श्रवणे करो। क्योकि उलटे घड़े में मूसलाधार वर्षा होने पर भी एक बूँद पानी अन्दर नही जाता और सीधा घड़ा बूँद बूँद से एक दिन लबालब भर जायेगा। नरक, तिर्यचं, देव, मनुष्य इन चारो गति में जीव अनादिकाल से जन्म मरण कर रहा है।

भगवान कहते हैं चार गति ससार में, पांच अनुत्तर विमान, महाविदेह को छोड़कर कोई ऐसा स्थान नहीं जहाँ जीव ने जन्म मरण न किया हो। ये जन्म-मरण की श्रृंखला कर्म बन्धन के कारण चलती रहेगी। ज्ञानीजन कहते है, जन्म मरण की गणना में गणित फैल हो जायेग पर गणना नही हो पायेगी। जिनवाणी सुनकर जब तक जीव सदुपयोग नही करेगा तो उसे मोक्ष नही मिलेगा | ज्ञान का जब अजीर्ण होता है अर्थात ज्ञान सुन कर उसका सदुपयोग नही किया तो ज्ञान सुनने से वह भीतर ठहरता नही ऊपर उपर से बार बार निकल जाता है। जिनवाणी छह काय की रक्षक है, प्रतिपाल है, इसे सुनकर भीतर उतारो क्योंकि जिनवाणी कभी अहित नहीं करती।

जिनवाणी श्रद्धा भक्ति के साथ और आस्था के साथ सुन‌कर ज्ञान प्राप्त करने वाला संसार को जानकर उसे त्यागने की कोशिश करेगा उसके मन में वैराग्य उत्पन्न होगा और वह दीक्षा लेकर अपना आत्म कल्याण करेगा। जिनवाणी श्रवण जो कानों से नहीं प्राणों के साथ करता है वह अपने आप को धन्य समझता है ज्ञान अमूल्य है इसे सुरक्षित रखना अत्यन्त मुश्किल है। पर हम ज्ञान को सुरक्षित रखने की बजाय धन- परिवार को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करते है।

जहाँ ज्ञान मिल रहा हो वहाँ गणधर के समान श्रेष्ठ पात्र बन कर लेने का प्रयत्न करो। कोई भी शक्ति संसार में तारने वाली है सिर्फ एकान्त रूप से जिनवाणी ही तारने वाली है, संसार को विराम देने वाली है। जन्म मरण से मुक्त कर शाश्वत स्थान दिलाने वाली है। अध्यक्ष अशोक कोठारी ने संचालन किया।

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