ए यम के यम स्थानक नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्म बंधुओ जिनवाणी सत्य का उद्घाटन कर संसारी जीवों को अपनी आत्मा का हित करने का निर्देश देती है। जो आत्मा जिनवाणी का अनुसरण करती है वह शाश्वत सुख की ओर कदम बढ़ा देती है। ज्ञानी जन कहते है जो जिनवाणी को धारण करता है वह विलम्ब से ही सही पर एक दिन अवश्य शाश्वत सुख को प्राप्त करती है। इसलिए संकल्प को कमजोर नहीं होने देना। जिनवाणी में शकां नही करना। धर्म को अपनाने वाले का तीन काल में भी अमंगल नहीं होता। ये धर्म मंगलकारी, हितकारी है। इसलिए सदैव धर्म-ध्यान करते हुए मोक्ष की अभिलाषा करनी चाहिए।
देवलोक की अभिलाषा करने से देवलोक में भोग भोगने पर फिर से नीचे ही आना पड़ेगा। इसलिए अभिलाषा सदैव सिध्दशीला की करनी चाहिए। जिनेश्वर देव की वाणी यर्थाथ रूप से फलित होती है। यदि व्रतों की आराधना सम्यक् प्रकार से की जाये, कषाय को मंद कर लिया जाए तो सुखपूर्वक मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। जैसे वैभवशाली व्यक्ति सुगमता पूर्वक यात्रा कर अपनी मंजिल को पा लेता है। जिसके पास जोगवाई नही है तो कष्ट पाकर धक्के खा कर मंजिल प्राप्त करता है इसी प्रकार मोक्ष के भी दो मार्ग है। एक पुण्य को बढ़ाकर सुखपूर्वक 12 व्रत की सम्यक आराधना कर मोक्ष को प्राप्त कर सकते है। नही तो पाप करते हुए चार गति के कष्ट उठा कर परिभ्रमण कर दुख पूर्वक मोक्ष को प्राप्त कर सकोगे। मर्यादा कर जीव स्वयं भी सुखी बनता है और संसार के सभी जीवों को भी सुखी बनाता है।