चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.उदितप्रभा ‘उषाÓ ने ज्ञानपंचमी पर प्रवचन में कहा कि अज्ञान का अंधकार भयानक, दुखदायी है जिसे सैकड़ों सूर्य मिलकर भी मिटा नहीं सकते। वे गुरु महान उपकारी हैं जो ज्ञानदान देकर अज्ञान के अंधकार को दूर करते हैं।
भूखे को भोजन, अंधे को नेत्रदान से भी ज्यादा ज्ञानदान का महत्व है। प्रभु महावीर का निर्वाण और गौतमस्वामी का केवलज्ञान होना एक ज्ञानसूर्य का अस्त और दूसरे का उदय है। पंचमी को पूर्णतिथि और आदीतिथि कहते हैं, इसमें जो भी कार्य किया जाए वह सानन्द संपन्न होता है।
ज्ञानपंचमी के दिन ही सुधर्मास्वामी ने प्रभु महावीर के पाट पर विराजित होकर उनके अवरुद्ध ज्ञान को आगे बढ़ाया। नवदीक्षितों को ज्ञानार्जन ज्ञानपंचमी के दिन शुरू कराने की श्रुतानुश्रुत परम्परा चलती थी। 14 पूरब का ज्ञान जो क्षीण होते-होते आज जितना बचा है उसकी प्राप्ति हम सभी को इसी श्रुतानुश्रुत परम्परा से संभव हुआ है।
आचार्य देवाधिगणि क्षमाश्रमण के द्वारा प्रभु की वाणी को आगम और शास्त्रों के लिपीबद्ध लेखन करने का कार्य इसी ज्ञानपंचमी के दिन से शुरू हुआ। इस ज्ञानपरंपरा को आगे बढ़ाने में श्रावक समाज का सहयोग अपेक्षित होता है। आज जिनवाणी की महिमा, ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने का दिन है।
जिन आचार्यों और संघ के पुरोधा मुनियों तथा श्रावकों ने श्रुत आगम का प्रकाशन और ज्ञान के प्रसार में सहयोग दिया उनका हम पर उपकार है। गुरु मधुकरमुनि ने उन लिपीबद्ध पौराणिक 16 आगमों को आज की सरल हिन्दी में अनुवाद किया और शेष १६ आगमों को पू.गुरुवर्या उमरावकंवर अर्चना ने करवाए जो हमें 32 आगम प्राप्त हैं।
अपनी संपत्ति को ज्ञान के प्रचार-प्रसार में लगाना चाहिए और नित्य आगम पाठन करेंगे तो ज्ञानपंचमी मनाना सार्थक होगा। पांच ज्ञान में इस श्रुतज्ञान को सर्वश्रेष्ठ बताया है जो हमें जिनवाणी के रूप में प्राप्त हुआ है। श्रुतज्ञान प्राप्ति से अज्ञान नष्ट होकर मन प्रसन्न और आनन्दमय रहता है। आवश्यकता है कुछ न कुछ ज्ञानार्जन करें और इस संपदा का सदुपयोग करें।
साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि बाह्य को देखकर अन्तर का अनुमान लगाया जा सकता है। लोकव्यवहार में खानपान, वेशभूषा, भाषा आदि से अनुमान लगाया जा सकता है उसी प्रकार समकिती की पहचान के लिए प्रभु ने तीन बातें बताई हैं। पहली- जो वितराग की वाणी में तल्लीन हो जाए वह समकिती है।
जिनवाणी आत्मा के रोग दूर कर उसे स्वस्थ और पुष्ट करती है, अमरता की ओर ले जाती है। दूसरा- भूखे को भोजन मिलने पर होनेवाले हर्ष की तरह समकिती व्यक्ति जिनवाणी सुनकर हर्षित होता है। तीसरा- ज्ञानार्जन करने का अवसर मिलने पर वह प्रसन्न होता है।
ज्ञानपंचमी के अवसर पर ज्ञान की आराधना करने का संदेश देती है। केवलज्ञान प्राप्त करना है तो श्रुतज्ञान प्राप्त करना होगा। भगवती सूत्र में प्रभु ने श्रुतज्ञान की आराधना करने का संदेश दिया है। ठाणं सूत्र में आठ आचार में ज्ञान का आचरण करने का ेकहा है। आज ज्ञानपंचमी के पावन दिन 150 महापुरुषों का कल्याणक है।
ज्ञान की साधना के साथ ज्ञान क्रिया भी करें। ज्ञान को गुड़ की उपमा दी गई है, जो मांगलिक कार्यों में शगुन की तरह मंगलकारी और शगुन है। सम्यक ज्ञान की प्राप्ति होने पर समकिती साधना में बढ़ता हुआ केवलाान प्राप्त कर सिद्ध बुद्ध मुक्त बनता है। ज्ञान और धन में ज्ञान का महत्व सर्वोपरि है, सर्वत्र पूज्य है। जो भव-भव में साथ रहता है।
धर्मसभा में पदमचंद खाबिया, उगमचंद बोहरा, इचलकरंजी से, मोहनीबाई बेंगलोर से दर्शनार्थ उपस्थित रहे। उत्तरपश्चिम दिशा में छह लोगस्स सामूहिक साधना करवाई गई जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।
2 नवम्बर को कर्नाटक गजकेसरी पू.गणेशीलालजी महाराज की जन्मजयंती सामायिक, तप के साथ मनाई जाएगी और मध्यान्ह ज्ञान बढ़ाकर खेलें हाउजी प्रतियोगी परीक्षा होगी। ३ नवम्बर को उड़ान टीम द्वारा पुच्छीशुणं प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण और रोल द कर्मा के स्टाल लगाए जाएंगे।