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जिनकी मंजिल तय रहती है, वे कभी रुकते नहीं हैं : प्रवीण ऋषि

जिनकी मंजिल तय रहती है, वे कभी रुकते नहीं हैं : प्रवीण ऋषि

20 अक्टूबर से शुरू होगी आयंबिल की ओली

Sagevaani.com @रायपुर। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि जिनकी मंजिल और रास्ते तय रहते हैं, वे कभी रुकते नहीं हैं। प्रमाद वही करते हैं जिन्हे समय का बोध नहीं होता है और रास्ता पता नहीं होता है। श्रीपाल को मैनासुन्दरी की याद आई और वह अपनी रानियों संग चल पड़ा उज्जैन की ओर। और श्रीपाल चुपचाप नहीं चलता है, रास्ते में जितने भी राज्य आते हैं उनके राजा को संदेश देता है कि मैं आ रहा हूं। जो राजा स्वागत के लिए आते हैं, उन्हें पुरस्कार मिलता है। और जो नहीं आते हैं, श्रीपाल उन्हें पराजित करता हुआ आगे बढ़ता है। जिन्होंने सम्मान किया उन्हें सम्मान मिला, जिसने सम्मान नहीं किया उनका अपमान हुआ। एक नगरी के द्वार पहुंचे, वहां का राजा स्वागत के लिए नहीं आया तो श्रीपाल ने कारण जानना चाहा। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि कोई भी काम नहीं हुआ है तो सबसे पहले उसका कारण जानें। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

लालगंगा पटवा भवन में गुरुवार को धर्मसभा में श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा सुनाते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि धर्मध्यान के 4 आलंबन गए हैं, उनमे एक है ‘अपाय विचय’ मतलब कि किस कारण से यह परिस्थिति हुई है, इसका चिंतन करना। जो परिस्थिति सामने है उसका कारण क्या है? राजा नहीं आया तो श्रीपाल ने तुरंत आक्रमण नहीं किया, उसने पहले कारण जानने की कोशिश की। वह नगरी में प्रवेश करता है तो देखता है कि वहां सन्नाटा पसरा हुआ है। उसे पता चला कि राजा की इकलौती बेटी त्रिलोकसुन्दरी को सांप से डस लिया था, वह मरणासन्न अवस्था में हैं। कोई भी वैद्य जहर नहीं उतार पाया है, और राजा उसकी अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहा है। नगर में शोक है, इसलिए राजा नहीं आया। दुःख किसी का देखा कर जो दुःख दूर करने का प्रयास करे उसका नाम श्रीपाल है। वह पहुंचता है और अंतिम यात्रा को रुकवाता है।

सब चौंक जाते हैं। श्रीपाल कहता है कि जीवित व्यक्ति को जलाया नहीं जाता है। राजा ने कहा कि यह जीवित नहीं है, श्रीपाल ने कहा कि यह जीवित है। उसने विषहरण हार को निकला, उसे धोकर उसका पानी कन्या पर छिटका और जहर निकल गया। त्रिलोकसुन्दरी ने जैसे आँख खोली, श्रीपाल सामने नजर आया और वह मोहित हो गई। राजा को आश्चर्य हुआ, नगरी में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। सब सोचने लगे कि यह महापुरुष कौन है? राजा ने श्रीपाल से रुकने का आग्रह किया, तो उसने कहा कि मुझे उज्जैन पहुंचना है, मैं नहीं रुक सकता, मैंने किसी को वचन दिया है। राजा ने कहा कि जब तुम शवयात्रा रोक सकते हो तो तुम्हे भी रुकना पड़ेगा। जिसको तुमने जीवन दिया है, उसे तुम्हे ही संभालना पड़ेगा। और त्रिलोकसुन्दरी श्रीपाल का विवाह हो जाता है। लेकिन वह रुकता नहीं है, उसे उज्जैन पहुंचना है।

मति ज्ञान की स्थिति है जो स्मृति के आधार पर वर्तमान को जानती है : उपाध्याय प्रवर

अपनी आठों पत्नियों संग श्रीपाल नौवीं पत्नी से मिलने चल पड़ा। बिना रुके चलते हैं, केवल दो दिन बाकी हैं अष्टमी के लिए, वह रुक नहीं सकता। वह कहता है कि विश्राम हम उज्जैन पहुंचकर करेंगे। श्रीपाल के साथ सेना चल रही है, उज्जैन में खबर पहुंचती है कि कोई राजा अपनी विशाल सेना के साथ नगरी की ओर बढ़ रहा है तो राजा पदमपाल के होश उड़ जाते हैं। उसे लगता है कि कोई आक्रमण करने आ रहा है।

नगर की सुरक्षा बढ़ा दी जाती है, सारे प्रवेश द्वार बंद कर दिए जाते हैं। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि सेना के साथ आने वाला आक्रमण भी कर सकता है, और बचाने के लिए भी आ सकता है। लेकिन हम नई परिस्थिति का मतलब हम पुराने आधार पर निकालते हैं। मति ज्ञान की स्थिति है जो स्मृति के आधार पर वर्तमान को जानती है। आज तक राजा ने देखा था कि जब भी कोई सेना लेकर आता था, आक्रमण के लिए आता था। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि इस बार सेना लेकर उसका दामाद श्रीपाल आ रहा है।

वहां श्रीपाल की माता को चिंता हो रही है, अष्टमी नजदीक है और श्रीपाल अब तक नहीं आया है। वह मैनासुन्दरी से कहती है तो वह बहु कहती है कि आप आर्तध्यान न करें। मेरी श्रद्धा सच्ची है, वे अवश्य आएंगे। वहां श्रीपाल देखता है कि नगर के सारे द्वार बंद हैं, तो वह अपनी शक्ति से घर के सामने पहुँचता है तो दरवाजा खटखटाता है। दरवाजा खोलते ही दोनों सास बहु प्रसन्न होते हैं। श्रीपाल दोनों के लेकर अपने ठिकाने पर आता है और अपनी रानियों से दोनों का परिचय कराता है। श्रीपाल मैनासुन्दरी से कहता है कि तुम्हारे पिता को कैसे बुलाऊँ? वह एक युक्ति बताती है, तो श्रीपाल दूत को भेजता है राजा के पास। राजा जब वहां पहुँचता है तो देखता है कि मैनासुन्दरी और कमलप्रभा दोनों वहां खड़ी हैं, और उनके साथ उसका दामाद श्रीपाल है, वह बहुत प्रसन्न होता है और उनका स्वागत सत्कार करता है।

उपाध्याय प्रवर ने आगे कहा कि दरबार में सभी रानियों का स्वागत होता है, नगरवासी दर्शन के लिए आते हैं। श्रीपाल के साथ एक नटमंडली भी चलती है तो उन्हें दरबार में खेल शुरू करने का निर्देश मिलता है। लेकिन नटों की मुख्य नर्तकी मना कर देती है। वह अपने स्थान से उठाने से मना कर देती है। जब जोर दिया जाता है तो वह खड़ी होती है और बताती है कि वह मैनासुन्दरी की बहन सुरसुन्दरी है। यह सुनकर सभी चौंक जाते हैं। अपनी कहानी सुनाते हुए वह कहती है कि जिससे मेरा विवाह हुआ था, वह मुझे मुसीबत में छोड़कर भाग गया था।

हमें डाकुओं ने घेर लिया था, और मेरा पति मुझे छोड़कर भाग गया। डाकुओं ने मुझे एक वेश्या के पास बेच दिया, वहां मुझे नृत्य-संगीत सिखाया गया। उसके बाद मुझे बब्बरदेश पहुँचाया गया, जहां मैं नटमंडली में काम करने लगी। राजा ने श्रीपाल को नटमंडली भेंट की थी, जिसके बाद मैं उनके साथ घूम रही थी। मैंने श्रीपाल को कोढ़ी रूप में देखा था, उसका असली स्वरुप मुझे नहीं पता था। आज मुझे पता चला कि आज तक जिसके सामने मैं नाच रही थी वही श्रीपाल है। जब मैंने आप सबको देखा तो दर्द उभर कर आ गया। अपनी पुत्री की हालत देखकर और उसकी कहानी सुनकर राजा पदमपाल बेहद दुखी हुआ।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि 20 अक्टूबर से आयंबिल की ओली प्रारंभ होने वाली है। वहीं श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 13 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।

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