साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने मंगलवार को कहा कि मनुष्य को जितना हो सके भलाई के कार्य करने चाहिए। अगर किसी की भलाई नहीं कर सकते तो बुराई भी नहीं करनी चाहिए।
जीवन को सफल बनाने के लिए हमेशा अच्छाई के ही विचार रखने चाहिए। जितना संभव हो सके मनुष्य को भलाई और उपकार के कार्य करने चाहिए। उन्होंंने कहा यदि हम किसी का बुरा करते हैं तो अपनी आत्मा का बुरा भी हो जाता है।
जब तक अच्छाई का गुण जीवन में नहीं आएगा तब तक हम धार्मिक नहीं बन सकते। जानते हुए भी अगर मनुष्य किसी की धरोहर लेने की कोशिश करता है तो यह पाप होता है। जीवन को धर्म के कार्यों से जोड़ते रहना चाहिए।
सागरमुनि ने कहा मनुष्य को चारित्र और तप इसी भव में मिलता है, इसका पूरा लाभ उठाना चाहिए। ज्ञान की आराधना के साथ चारित्र की आराधना भी करनी चाहिए क्योंकि मनुष्य भव में ही चारित्र का आराधना करना संभव है।
यह जीवन एक बार गया तो वापस लौट कर नहीं आएगा। मनुष्य की आत्मा ही उसके सुख दुख का कारण है। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।