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जितना पुण्य प्रबल, उतनी ही लक्ष्मी की प्राप्ति: जयधुरंधर मुनि

जितना पुण्य प्रबल, उतनी ही लक्ष्मी की प्राप्ति: जयधुरंधर मुनि

वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने आचार्य जयमल के 312वें जन्मोत्सव के त्रिदिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन कहा मंगल सभी प्रकार के विघ्नों का नाश करने वाला होता है ।

किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में मनुष्य अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने आराध्य की स्तुति करता है। इससे वह व्यक्ति अपना कार्य निर्विघ्न संपन्न करने की शक्ति संकल्प व साहस भरता है। लौकिक दृष्टि से अष्टमंगल माने जाते हैं ।

वही चार मंगल आध्यात्मिक क्षेत्र में बताए गए हैं। अलौकिक मंगल का प्रभाव केवल भौतिक जगत में ही होता है जबकि लोकोत्तर मंगल दोनों ही जगत में प्रभावशाली होता है।

लक्ष्मी पुण्य की दासी होती है। जिसका जितना पुण्य प्रबल होता है , उसे उतनी ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पुण्य एवं पुरुषार्थ दोनों की आवश्यकता होती है। पुण्य के फलस्वरूप प्राप्त लक्ष्मी से सुख , शांति, चैन, अमन की प्राप्ति होती है, जबकि पाप अन्याय, अनीति, अत्याचार से प्राप्त धन दुखी देता है।

मुनि ने चमत्कारी जय जाप के लाभ बताते हुए कहा कि इससे मनुष्य के राज और काज दोनों में तेज रहता है। संयमी साधकों के आभामंडल पर विशेष ओज और तेज रहता है । जो भी उनके दर्शन करते हुए उनके सानिध्य में रहते हैं उनके स्वयं के भी तेज बढ़ जाता है। तेजस्वी बनने के लिए जप और तप दोनों जरूरी है।

भारतीय संस्कृति त्यागी एवं तर्क प्रधान है। जिस समय यति वर्ग ने आचार्य जयमल के शिष्य सूरजमल मुनि पर तंत्र विद्या का प्रयोग करते हुए उन्हें मूच्र्छित कर डाला था तब उनके एक गुरु ने एक उत्कृष्ट काव्य रचना उसी समय रचित की और देखते ही देखते आश्चर्यजनक रूप में उनके शिष्य पुनश्च उठकर बैठ जाते हैं।

इससे पूर्व जयपुरंदर मुनि ने आचार्य जयमल के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके जयपुर प्रवास का विशेष उल्लेख किया और जो जिन मत पर संकट छाया हुआ था उसको वहां के राजा के माध्यम से दूर किया।

अंतिम समय में 13 वर्ष आचार्य जयमल ने नगीना नगरी नागौर में स्थिरवास करते हुए संथारा पूर्वक देवलोक गमन को प्राप्त किया। सामूहिक एकासन तेले की तपस्या के अंतर्गत आज 400 से अधिक तपस्वियों ने एकासन तप किया ।

रविवार को मुख्य कार्यक्रम के अंतर्गत आचार्य जयमल का गुणगान, प्रवचन एवं लघु नाटिका का मंचन तथा बड़ी तपस्या एवं शीलव्रत के प्रत्याख्यान प्रात: 9.30 बजे से प्रारंभ होंगे। संघ अध्यक्ष नरेंद्र मरलेचा ने संचालन किया।

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