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जिज्ञासा से जन्मा भक्ति का अनूठा स्तोत्र है पुच्छिंसुणं : प्रवीण ऋषि

जिज्ञासा से जन्मा भक्ति का अनूठा स्तोत्र है पुच्छिंसुणं : प्रवीण ऋषि

लालगंगा पटवा भवन में शुरू हुई वीरत्थुई की आराधना

धर्मसभा में प्रवीण ऋषि से मिले महंत रामसुंदर दास

Sagevaani.com /रायपुर। उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के बाद लालगंगा पटवा भवन में बुधवार को एक अनोखी यात्रा प्रारंभ हुई। जम्बूस्वामी की जिज्ञासा के उत्तर में सुधर्मा स्वामी द्वारा रचित भगवान महावीर की अनोखी व अद्भुत स्तुति पुच्छिंसुणं (वीर स्तुति) की आराधना। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि जंबूस्वामी से लोग सवाल पूछते थे, प्रभु के बारे में पूछते थे। वे पूछते थे कि जिसे तुमने देखा ही नहीं है, उसके पीछे जा रहे हो? कैसे उस पर फ़िदा हो गए? जंबूस्वामी के पास कोई उत्तर नहीं था, वे पहुंचे सुधर्मा स्वामी के पास।

उन्होंने जिज्ञासा रखी सुधर्मा स्वामी के समक्ष, और वे उनकी जिज्ञासा शांत करते चले गए। यही है पुच्छिंसुणं (वीर स्तुति) जिसकी आराधना आज से शुरू हुई है। आज की धर्मसभा में गौसेवा आयोग के अध्यक्ष महंत रामसुंदर दास तथा रायपुर नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे भी उपस्थित थे। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि बहुत सारे स्तोत्रों का जन्म आध्यात्म जगत में हुआ है। देखा जाए तो स्तोत्र के जन्म के पीछे परिस्थितियां थीं, भक्तामर का जन्म इसलिए हुआ कि आचार्य मानतुंग बेड़ियों से जकड़ गए, कल्याण मंदिर का जन्म इसलिए हुआ कि सिद्धसेन दिवाकर को एक चुनौती मिल गई थी। प्रायः जब भी परमात्मा की भक्ति हुई है, उस भक्ति के पीछे मुख्य कारण रहा दुःख, समस्या, त्राहि। लेकिन हमारे पास एक ऐसा भक्ति का स्तोत्र है जो जिज्ञासा से जन्म है।

इसके पीछे कोई समस्या, मज़बूरी, परेशानी या कोई उपद्रव कारण नहीं है। यह स्तोत्र केवल परमात्मा को जानने की जिज्ञासा से जन्म है। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जिज्ञासा से दर्शन का जन्म होता है, तत्वज्ञान का जन्म होता है, विज्ञान का जन्म होता है, लेकिन जिज्ञासा से धर्म का जन्म होना अनूठा है। पुच्छिंसुणं जिज्ञासा से जन्म है, और इसके जैसा कोई स्तोत्र दुनिया में नहीं है। इससे पहले जब भी किसी ने प्रभु को पुकारा है तो बुलाने के लिए पुकारा है, कि मैं संकट में घिरा हूं, आओ मुझे बाहर निकालो। भजन के पीछे कहीं न कहीं दुःख लगा रहता था। कोई सोच भी नहीं सकता कि भक्ति का जन्म जिज्ञासा से भी हो सकता है। इसके पीछे कारण है कि जिसके विषय में जिज्ञासा करोगे उसका जन्म होता है। किसी ने प्रभु को जानने की जिज्ञासा नहीं की। सभी की जिज्ञासा प्रभु को पाने की होती थी, उन्हें जानने की नहीं।

उपाध्याय प्रवर ने कहा कि एक होता है पाने के लिए चलना और एक होता है जीने के लिए, जानने के लिए चलना। वीरत्थुई की भूमिका समझ लेंगे तो यह यात्रा आसान हो जाएगी। यह इसलिए अनूठी है कि ये उनको पूछा गया है जो परमात्मा के साथ जिए हैं। जानने वाले को पूछोगे तो तर्क मिलेगा, जीने वाले को पूछोगे तो जिवंत मिलेगा, चैतन्य मिलेगा। भक्तामर, कल्याण मंदिर आवश्यकता से जन्मे, ये खुले वातावरण में नहीं है।

लेकिन वीरत्थुई स्तोत्र का जन्म आवश्यकत से नहीं हुआ, ये उससे जन्मा जिसने प्रभु को पा लिया था। जानने वाला कानों से सुनता है और जीने वाला रोम-रोम से सुनता है। और उनसे पूछना कि अपने जैसा सुना है, वैसा बताएं। जंबूस्वामी ने सुधर्मा स्वामी के सामने शर्त रखी थी कि अपने जैसा सुना है, ठीक वैसा ही बताना है। और पूछा उनके विषय में है जिन्हे हम कभी सोच नहीं सकते, सुना जा सकता है। यह उसने विषय में है जिनके विषय में बोलना असंभव है। 3 सवाल के जवाब में 27 गाथा का जन्म होना, 108 पंक्तियों का जन्म होना और इन पंक्तियों के एक एक शब्द अनूठे हैं।

गंगा के पानी और अन्य पानी में जो अंतर है वही अंतर सुधर्मा स्वामी की भक्ति और अन्य की भक्ति में है। उन्होंने 30 साल तक प्रभु की अनन्य भक्ति की थी। भक्ति के अहसास को बनाये रखना एक बड़ी चुनौती है और 30 साल की भक्ति को 108 पंक्तियों में प्रस्तुत करना अनूठा है। जंबूस्वामी ने सुधर्मा स्वामी से 3 बातें पूछी ज्ञान दर्शन व शील। सुधर्मा स्वामी ने कहा कि पहले परमात्मा के धैर्य को जानें, उसकी प्रेक्षा करें। धर्म को जानो और धैर्य की प्रेक्षा करो। गोशालक, जमाली जैसे शिष्य के रहते हुए भी उनका धैर्य परास्त नहीं हुआ।

धर्मसभा में प्रवीण ऋषि से मिले महंत रामसुंदर दास 

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने कहा कि महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव और उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के बाद बुधवार से पुच्छिंसुणं (वीर स्तुति) की आराधना प्रारंभ हुई है जो 24 नवंबर तक चलेगी। उन्होंने बताया कि आज धर्मसभा में राज्य गौसेवा आयोग के अध्यक्ष व रायपुर दक्षिण विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी महंत रामसुंदर दास तथा रायपुर नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे धर्मसभा में उपस्थित थे। उन्होंने उपाध्याय प्रवर का प्रवचन सुना और उनसे मुलाकात की।

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