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जहां मृत्यु के बाद जन्म नहीं है वह निर्वाण है: आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

जहां मृत्यु के बाद जन्म नहीं है वह निर्वाण है:  आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

किलपाॅक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने उत्तराध्ययन सूत्र को आगे बढ़ाते हुए कहा सारे जगत ने जन्म को उत्सव मान लिया है। लेकिन मृत्यु का उत्सव जैन शासन में ही मिलेगा। दीपावली पर्व निर्वाण का अवसर है। जो मृत्यु के बाद जन्म होता है वह मृत्यु है, जहां मृत्यु के बाद जन्म नहीं है वह निर्वाण है।

आज साइंस व टेक्नोलॉजी ने जन्म को रोकने के साधन दिए हैं लेकिन मृत्यु को कोई नहीं रोक सकता है, मृत्यु से कोई भाग नहीं सकता। मृत्यु अवश्यम्भावी है। हमारी मृत्यु को महोत्सव बनाना है, समाधि मरण की प्राप्ति करनी है।

उन्होंने कहा धर्म और मोक्ष उपादेय है। अर्थ और काम हेय है। हमें मोक्ष के लिए पुरुषार्थ करने की जरूरत नहीं है, पुरुषार्थ धर्म के लिए करना है। धर्म यानी अर्थ और काम के प्रति हेय बुद्धि हो। अर्थ और काम अनर्थकारी है।
धर्म ही हमारा जीवन है। जीवन में सब कुछ अनुकुलता है तो यह सोचना देव, गुरु और धर्म की कृपा है। भगवान महावीर द्वारा बताई गई चार दुर्लभ चीजों के बारे में सोचने की अत्यंत आवश्यकता है। किसी भी परिस्थिति में धर्म से विमुख न हो उस कसौटी पर खरा उतरना है।
उन्होंने कहा जीवन में प्रमाद का प्रभाव हमारे ऊपर बहुत पड़ा है। जब शुभ विचार पैदा हो तो कतई विलंब नहीं करना चाहिए। डिलै इज डेंजरस की नीति अपनानी चाहिए।
उन्होंने कहा पुण्य और पाप पर श्रद्धा करना धर्म के प्रति श्रद्धा है। न्याय व नीति से व्यापार करना धर्म है। धर्म से कोई दुखी नहीं होता है, यह आत्मा की रक्षा करने वाली है। आज नहीं तो कल धर्म का फल अवश्य प्राप्त होता है।
महापुरुष कहते हैं संयम स्वीकार करने के लिए पराक्रम करना आवश्यक है। केवल इच्छा से संयम नहीं मिलेगा। पराक्रम यानी परिग्रह और परिवार का त्याग जो आसान कार्य नहीं है। हमारे जीवन में अनादि काल से पड़ा लोभ आसानी से टूटेगा नहीं। उसे तोड़ने के लिए पराक्रम करना ही पड़ेगा।
उन्होंने कहा परिग्रह की ग्रंथि को तोड़ना सामान्य प्रयत्न से संभव नहीं होगा, उसके लिए भी पराक्रम करना पड़ेगा। घर, परिवार, माता- पिता को छोड़ना सरल कार्य नहीं है, यह तो स्वेच्छा से त्याग करना होता है। इसके लिए राग, मोह, ममत्व की ग्रंथि को तोड़नी पड़ेगी। उन्होंने कहा सर्वश्रेष्ठ धर्म चारित्र धर्म है। चारित्र स्वीकार करने के बाद प्रतिकुल संयोगों में संयम की विराधना नहीं करने का संकल्प ही पराक्रम है।
अपनी अंतिम देशना में महावीर भगवान ने ये चार बातें बताई जिनका क्रियान्वयन मनुष्य गति में ही संभव है, अन्य कोई गति में नहीं। उन्होंने कहा आयुष्य को आप कभी बढा नहीं सकते। तीर्थंकर परमात्मा भी अपनी आयुष्य को नहीं बढा सकते। आयुष्य कब टूटेगा, यह हमें नहीं पता। इसलिए महावीर भगवान कहते हैं प्रमाद से बचो और आत्मकल्याण के मार्ग पर आगे बढो।
प्रवचन के दौरान किलपाॅक संघ द्वारा चातुर्मास में आवास व्यवस्था में सहयोग के लिए गोयल परिवार व जिग्नेश मोवानी, चिकित्सकिय सहयोग के लिए डाॅ सुनील सिंघवी व डॉ पदम जैन एवं मीडिया प्रचार, प्रसार के लिए राजेन्द्र कामदार का सम्मान किया गया।

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