किलपाॅक में रंगनाथन एवेन्यू स्थित एससी शाह भवन में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा जहां परमात्मा की विद्यमानता रहती है वहां अतिवृष्टि और अनावृष्टि नहीं होती । वहां सब प्राणियों में आपस में प्रेम रहता है । प्रकृति भी अनुकुल बन जाती है ।
उन्होंने कहा परमात्मा को सूर्य की उपमा दी गई है । क्योंकि सूर्य की भांति परमात्मा प्राणी जगत के लिए तीन कार्य करते हैं प्रबोध, प्रमोद और प्रकाश । प्रबोध यानी वे मोह में पड़े प्राणियों को जगाने का कार्य करते हैं । साथ ही प्रमोद यानी सब जीवों का जीवन आनंदमय बनाते है और वे जगत को ज्ञान का प्रकाश देते हैं । उन्होंने कहा यदि परमात्मा ने हमें ज्ञान का प्रकाश नहीं दिया होता तो हम अज्ञानता से भरे होते ।
आचार्य ने कहा सूत्र बहुत सारे अर्थ को संक्षिप्त में बताने वाले होते है । भगवान महावीर ने तीन सूत्र दिए, उगमई वा, विगमई वा और धुवई वा । इन संक्षिप्त सूत्रों से विशाल अर्थ निकलते हैं । सूत्र छोटे बीज की तरह होते हैं जिसमें विराट वृक्ष के दर्शन कर सकते हैं लेकिन आप यह मानने को तैयार नहीं ।
आचार्य ने कहा अगर आपको बीज के अन्दर विराट वृक्ष दिखाई दे तो आत्मा परमात्मा के दर्शन कर सकती है । लेकिन बीज को जमीन, खाद, पानी, प्रकाश मिलता है तब वृक्ष का निर्माण होता है । हमारी वर्तमान स्थिति बीज के समान है । गुरु हमें खाद, पानी प्रदान करने का कार्य करते हैं ।
उन्होंने कहा नियमित जिन वाणी श्रवण करोगे तो अंकुर तो फूट ही जाएगा । उन्होंने कहा खुले होने का मतलब है बुद्धि में कोई प्रकार का पूर्वाग्रह हो तो उसे निकाल देना । अगर पूर्वाग्रह भरे होंगे तो ज्ञान का हमारे अन्दर प्रवेश नहीं हो पाएगा ।
उन्होंने कहा लोक प्रशंसा में अहंकार की भावना नहीं आनी चाहिए । अहंकार पतन का कारण बन जाता है । संसार तो आज प्रशंसा कर एक दिन नीचे गिरा देगा, यह संसार का स्वभाव है । हमें अपने प्रति दूसरों की सद्भावना को समझने की कोशिश करनी चाहिए । चातुर्मास आराधना के लिए अंजनशलाका तक अट्ठम और आयम्बिल तप नियमित रूप से होंगे ।