चेन्नई. सरलता और कपट एक-दूसरे के विरोधी हैं। जो मन, वाणी और कर्म से एक होते हैं वे महात्मा होते हैं। जिनकी कथनी व करनी में अंतर होता है वे दुरात्मा होते हैं। झूठ और कपट में चोली-दामन का संबंध है। जहां कपट है वहां झझट है।
ताम्बरम स्थित जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जो सत्य होता है वह सरल भी होता है और जो सरल होता है वह सत्य भी होता है। सत्य की देह में यदि सरलता का प्राण नहीं है तो वह सत्य मृत, भारभूत व अभिशाप है। सत्य शिखर है तो सरलता मार्ग। जहां मार्ग और मंजिल का मिलन होता है वहीं पर सरल-सत्य खिलता है और परमात्मा अवतरित होता है। जो सरलता बालक में बाह्य होती है वह बड़ों में नहीं।
जहां सरलता है वहां निर्भीकता है। सरल का कोई शत्रु नहीं है। वह सभी का मित्र होता है। सरल व्यक्ति त्रिभुज जैसा होता है जो समर्पित होता है। उसका जीवन खुली किताब की तरह होता है। दस धर्मों में सरलता भी एक धर्म है। साध्वी सुप्रतिभा ने कहा मानव के चिंता और क्रोध ये दो प्रबल शत्रु हैं। ये दोनों भाई-बहिन के समान हैं।
जो मानव के साथ छाया की तरह लगे रहते हैं। प्रभु महावीर ने चार प्रकार का ध्यान बताया है-दुख देने वाला आर्तध्यानी, दुख से लडऩे वाला रौद्रध्यानी और हंसते-हंसते दुख सहने वाला धर्मध्यानी कहलाता है। जिसके मन में न चिंता है और न चिंतन, और जो इनसे मुक्त है वह शुक्ल ध्यान का अधिकारी होता है इसलिए हमें चिंता नहीं चिंतन करना चाहिए।