चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन भवन में साध्वी नेहाश्री ने कहा आत्मा के लिए आशक्ति बंधन है। इससे संसार बढता है। व्रत पच्चखाण से आशक्ति टूटती है। पच्चखाण से जीवों पर अनुकंपा बढती है और अभयदान मिलता है।
उन्होंने कहा सम्यक्त्व आने पर व्यक्ति की सोच और दृष्टि बदल जाती है। मिथ्या दृष्टि दोष देखती है जबकि सम्यक दृष्टि गुण ग्रहण करती है। आत्मा की आवाज सुनने वाले अनाशक्त हैं।
आशक्ति के वशीभूत जीव अपना विवेक भूल जाता है और पाप कर्म का बंधन कर लेता है। साधु-संतों की संगति से आशक्ति घटती है। पौदगालिक सुख की प्रवृत्ति कम होती है और आत्मा सिद्ध, बुध और मुक्त बन जाती है।