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जहां आतप होता है वहां छाया नहीं होती: आचार्य महाश्रमण

जहां आतप होता है वहां छाया नहीं होती:  आचार्य महाश्रमण

सत्तनाथपुरम. सिरकाली में विराजित आचार्य महाश्रमण विहार कर सत्तनाथपुरम स्थित शुभम विद्या मंदिर पहुंचे जहां विद्यालय प्रबंधन, शिक्षकों और विद्यार्थियों ने उनकी अगवानी कर अभिनन्दन किया। यहां आयोजित धर्मसभा में आचार्य ने कहा आदमी भले सच बोलता है लेकिन कभी-कभी वह झूठ का भी प्रयोग कर लेता है।

दुनिया में सच्चाई के साथ ही झूठ का अस्तित्व भी है। झूठ को विद्धानों, संतों और प्रबुद्ध लोगों द्वारा वर्जित किया गया है। झूठ अविश्वास का कारण है, इसलिए भी इसका वर्जन किया गया है। सभी को हमेशा झूठ से बचने का प्रयास करना चाहिए।

ईमानदारी के दो दुश्मन बताए गए हैं-झूठ और चोरी। हमेशा झूठ और चोरी का परिहार कर ईमानदारी और सच्चाई के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। झूठ हर तरफ से नुकसान करने वाला होता है। झूठ बोलने से व्यक्ति के यश का सर्वनाश हो जाता है। झूठ को यश का नाशक और दु:खों का कारण भी कहा जाता है।

झूठे आदमी को कई बार कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ सकता है। जहां आतप होता है वहां छाया नहीं होती, इसी प्रकार जहां झूठ हो, वहां संयम और तप नहीं हो सकता। मतिमान आदमी को मिथ्यावचन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। हमेशा सच बोलने का प्रयास करना चाहिए।

उन्होंने कहा सच्चाई और ईमानदारी के पथ चलने वाले के पग-पग पर निधान होता है। उसका विश्वास बढ़ता है, लोगों में उसका यश फैलता है। सच्चाई के रास्ते पर कभी-कभी कठिनाइयों का सामना तो करना ही पड़ता है, किन्तु बाद में सच्चाई मानो सफलता और सुख का खजाना खोल देती है। पहले सच्चाई जैसे परीक्षा लेती है। ज्ञान को अमृत के समान पवित्र माना गया है और जहां ज्ञान का अर्जन होता है, वह स्थान भी पवित्र होता है। विद्यार्थियों में ज्ञान का विकास हो उसके साथ-साथ उनके आचरण में ईमानदारी का विकास हो जाए तो उनका मन भी मंदिर बन जाएगा। आचार्य ने वित्त और वृत्त के बारे में बताया कि दुनिया में वित्त तो उपयोगी हो सकता है, किन्तु बच्चों के वृत्त पर भी ध्यान देने का प्रयास हो और जीवन-विज्ञान का प्रयोग किया जाए तो बालपीढ़ी का अच्छा निर्माण हो सकता है। विद्यालय द्वारा अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण हो सकता है।
प्रवचन के उपरान्त आचार्य ने शुभम विद्या मंदिर के बारे में कहा कि विद्यार्थियों में खूब ज्ञान का विकास हो। आचार्य ने मंगलपाठ भी सुनाया। इससे पूर्व साध्वीप्रमुखा ने भी उद्बोधन दिया। इस मौके पर विद्यालय के संस्थापक ज्ञानचंद आंचलिया, ट्रस्टी कृष्णकुमार माहेश्वरी, प्रबन्धक सुदेश आंचलिया, प्रिंसिपल के. विद्या ने भी विचार व्यक्त किए।

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