चेन्नई. जय धुरंधरमुनि, जयकलशमुनि व जयपुरंदरमुनि गुरुवार सवेरे पल्लीपट्ट पहुंचे जहां श्रद्धालुओं ने उनकी अगवानी की। यहां प्रवचन में जयपुरंदरमुनि ने कहा भाव के बिना क्रिया निष्फल हो जाती है।
जिस प्रकार पति बिना नारी, राजा बिना सेना, हवा बिना पहिया व्यर्थ है उसी प्रकार भाव बिना क्रिया भी बेकार है। जैन धर्म भावना प्रधान है और भाव ही भवभ्रमण समाप्त कराता है।
निर्वाण की नींव है भावना। दान देते समय भी द्रव्य के साथ में भावों की उत्कृष्टता आवश्यक है। धर्म क्षेत्र में जप-तप, सामायिक से कितना पापनाश हुआ जितना लाभ बताया जाता है उसे पाने का एक ही माध्यम बताया गया है भाव।
विमलचंद मूथा ने भी विचार व्यक्त किए। मुनिगण का शुक्रवार का प्रवचन भी यहीं होगा।