जयमल जयंती के तृतीय दिवस पर अन्नदान कार्यक्रम ज्ञान युवक मण्डल द्वारा किया गया। मण्डल के प्रोजेक्ट चेयरमैन ज्ञानचंद कोठारी ने बताया कि रायपुरम जैन भवन के बाहर तथा सरकारी आर यस आर यम हास्पिटल के पास करिब 700 जरूरतमंदो को भोजन कराया गया।
गुरुदेव जयतिलक जी मरासा ने प्रवचन में बताया कि संसार में आगार और अणगार दो धर्म है। अणगार धर्म में परिग्रह को छोड़ आत्म कल्याण का मार्ग अपनाना है और गृहस्थ उसके संयमाराधना में सहयोगी बने। यदि साधन उपलब्ध न हो तो समभाव रखे। वस्त्र, आहार, पानी, औषध, भोजन आदि 14 के प्रकार के गृहस्थों से आज्ञा लेकर भोगे जाते हैं! नौ प्रकार के परिग्रह को छोड़कर साधु अप्रमत्त बन सकता है। जहाँ जैनो की बस्ती नहीं होती वहाँ कुछ कठिनाई हो सकती है! सरल अन्य मतावलम्बी भी अपनी बुद्धिनुसार आज्ञा प्रदान कर सेवा करते है।
उस समय जयमल जी के काल में यतियों का बोलबाला था जैन मुनि को राजस्थान में प्रवेश, ठहरने का स्थान नहीं दिया जाता। यतियों के डर से गृहस्थ डरते थे। उनका मानना था कि पाँचवे आरे में शुद्ध धर्म नहीं है! विचरण करते करते भूधरजी म.सा, जयमल जी म सा जब गढ़ सिवाना में एक प्रहर तक उस स्थान की गवेषणा करते रहे किंतु कहीं स्थान नहीं मिला क्योंकि यतियों ने अनेक झुठी भ्रातियाँ फैला कर रखी थी! ऐसे समय में एक भूतबंगला ही मिला। जिसका प्रतिलेखन किया फिर सभी मुनिराज यत्नापूर्वक शुद्धि करके आज्ञा लेकर रुक गए। गाँव में खलबली मच गई। यह सुबह तक जीवित रहेगे या नहीं! ‘धर्म रक्षतिरक्षत:’ जो धर्म की रक्षा करता है उसकी धर्म रक्षा करता है! गोचरी पानी जितना मिला उसे समभावपूर्वक भोगा!
रात्रि में प्रतिक्रमण कर स्वाध्याय करने लगे! यथा समय सबने आडा आसन किया। किंतु जयमल जी मा सा गुरु आज्ञा से साधना में लीन हो गये! रात्रि में भयंकर अट्टहास करते हुए एक प्रेतआत्मा प्रकट हुई ! सारे मुनिगण स्वाध्याय में लीन हो गये। वह प्रेतात्मा पुछने लगा “कौन हो तुम’ साधुओ ने जबाब दिया हम जैन संत है! तुम किसकी आज्ञा से यहाँ ठहरे हो यह मेरा बंगला है यहाँ गड़ा हुआ धन मेरा है। धन की आसक्ती से वह प्रेत बना ! नीतिपूर्वक कमाए धन में आसक्ति नहीं होती है। नीतिपूर्वक धन में यदि एक अंश भी अनिति का धन आ जाय तो सारा धन बेकार हो जाता है!
नीतिपूर्वक अर्जन करने से घर में शांति समृद्धि बनी रहती है अन्यथा घर में, दु:ख, आसक्ति बढ़ती जाती है। उस प्रेतात्मा को भी अपने घर संपति से आसक्ति थी! जयमलजी म.सा ने फरमाया हम जैन मुनि एक तृण भी बिना आज्ञा नहीं लेते है! प्रेतात्मा ने पूछा, आपको किसने आज्ञा दी। जयमलजी म.सा ने कहा अनीति से कमाए धन के कारण तुम प्रेतात्मा बने हो अब जैन मुनि की असात्ना कर अब पाप क्यों कर रहे हो।
प्रेतात्मा ने स्वीकार किया और पूछा अब मेरी आत्मा का उद्धार कैसे हो! जयमल जी महाराज के एक वचन के उस प्रेतात्मा को साता पहुँची और जीवन पर्यन्त के लिए किसी को नहीं सताने का संकल्प कर लिया।
संचालन मंत्री नरेंद्र मरलेचा ने किया।