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जयमल जयंती का चौथा दिवस अनुकम्पा दिवस के रूप में मनाया गया

जयमल जयंती का चौथा दिवस अनुकम्पा दिवस के रूप में मनाया गया

नार्थ टाउन में ए यम के यम स्थानक में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने फरमाया कि आत्मबन्धुओ धर्म दो प्रकार के आगार धर्म, आणगार धर्म । अणगार धर्म – जो अष्ट कर्मो से मुक्त होने का उपाय करते है वो साधु साध्वी रुप धर्म अणगार धर्म है।

आगार धर्म -जो संसार में अभी तक अष्ट कर्मो से युक्त है उनसे मुक्त होने के लिए आंशिक रूप से व्रतों का पालन करता है ऐसे श्राविका -श्राविका धर्म आगार धर्म है । पहले व्रत में सभी व्रतों का समावेश हो जाता है बारह व्रत में मूल और प्रधान व्रत अहिंसा व्रत है जैसे खेत के चारों ओर बाड़ लगायी जाती है वैसे ही अंहिसा व्रत से शेष व्रतों की सुरक्षा होती है पहले व्रत की सुरक्षा के लिए चार व्रत बनाये है जिससे अहिंसा व्रत की सुरक्षा हो सकती है। पहले व्रत की रक्षा के लिए ग्यारह व्रत बनाए हैं। चार अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत। पहला व्रत के पाँच अतिचार हैं। बन्ध – किसी भी प्रकार के बन्धन से नहीं बांधना।

वहे -किसी भी प्रकार का धाव नहीं देना । किसी के जीवों के अंगो का छेदन भेदन नहीं करना। पति – पत्नी, मां-बेटे को भी अलग करना भी छविच्छेए है किसी को नौकरी से निकाल देना। अजीविका चली जायेगी तो भुख से जीव मर भी सकता है। भत्त पान – खाने-पीने में बाधा डालना। किसी बीमारी के कारण बाधा डाले तो आगार । भोजन के अन्दर कभी अन्तराय नहीं देना। एक हत्यारा जितना पाप करता है उससे अनन्त गुणा पाप भोजन में अन्तराय देने में है।

सासु धन दौलत नहीं भी दे तो उसने अपने कलेजे के टुकड़े को आपके हाथ में दे देती है । एक नारी में बहुत सारी लक्ष्मी होती है । लक्ष्मी को रूठना नहीं चाहिए। एक नारी में संस्कार लक्ष्मी, सेवा लक्ष्मी, अण्ण लक्ष्मी, धन लक्ष्मी आदि कई लक्ष्मी है। इतनी लक्ष्मी है तो उसका सदुपयोग करो। ऋषभदेव भगवान ने पूर्व भव में 13 घंटे खाने की अंतराय दे दी तो भगवान के भव में उनको 13 महीनें आहार पानी की उपलब्धि नहीं हुई।

इन पाँच अतिचारों का प्याग नहीं कराया जाता है उनका प्रतिक्रमण आदि के द्वारा शुद्धिकरण किया जा सकता है।अनाचार यानि व्रत का सर्वथा भंग होना। हर व्रत के साथ 5-5 अतिचार है | आज अनुकम्पा दिवस है अनुकम्पा यानि – हृदय में कम्पन होना। अनुकम्पा धर्म ऐसा धर्म है जिसमे जाति, कुल, कुछ भी नहीं देखा जाता है बिना भेदभाव के, बिना देखे सहयोग दिया जाता है वो अनुकम्पा है । अनुकम्पा- स्वयं आत्मा की अनुकम्पा करना । लौकिक व्यवहार के अनुसार जो भी व्यक्ति दुःखी है पीड़ित है उन पर दया करना भी अनुकम्पा है अनादि काल के निकाचित कर्म को भी अनुकम्पा से तोडे जा सकते है अनुकम्पा सम्यकत्व का भूषण है।

अध्यक्ष अशोक कोठारी ने संचालन करते हुए बताया कि अनुकम्पा के बिना जन्म जयंती मनाना सार्थक नहीं होता है। इसलिए आज के दिन सभी को कुछ न कुछ अनुकम्पा दान अवश्य करना चाहिए।

अध्यक्ष अशोक कोठारी, मंत्री ललित बेताला, कोषाध्यक्ष राजमल सिसोदिया, बंशीलाल डोसी आदि सदस्यों ने पिंजरापोल गौशाला व वेपेरी गौशाला में गौमाताओं को हरी घास, ककड़ी व केले खिलाएं।

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