किलपाॅक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने नवपद की आराधना के दौरान चारित्र पद का महत्व बताते हुए कहा कि जब ज्ञान की पराकाष्ठा होती है तब चारित्र का प्रादुर्भाव होता है।
ज्ञान को सूर्य की उपमा दी गई है। सूर्य का कार्य है अन्धकार को दूर करना। अज्ञान के सम्मोह को दूर करना ज्ञान है। जब तक यह सम्मोह दूर नहीं होगा चारित्र पालना संभव नहीं होगा।
शरीर, संसार के पुद्गलों से मोह को खत्म करना ही ज्ञान है। रत्नाकर पच्चीसी जिनशासन की प्रसिद्ध रचना है। इसकी रचना सम्मोह का त्याग करने के बाद रत्नाकरसूरि ने की। इसमें आत्मा के अन्दर से निकले शब्द है। इसमें आत्म निंदा समाहित है।
उन्होंने कहा आज क्रिया व तप बढ गए हैं लेकिन ज्ञान के प्रति हमारी उपेक्षा अधिक है। आज ज्ञान का स्रोत धार्मिक पाठशाला है। सम्यक ज्ञान के कारण सम्यक दर्शन की शुद्धि व निर्मलता होगी। जो भवसागर से पार उतारे वही ज्ञान है। भवसागर से तारने की विद्या नहीं है तो आपके जीवन में कुछ नहीं है।
भवसागर से तरना है तो चारित्र रुपी जहाज में बैठ जाने से तर जाओगे। उन्होंने कहा चारित्र धर्म के दो प्रकार है देश विरति और सर्व विरति चारित्र धर्म। देश विरति श्रावक के लिए है और सर्व विरति चारित्रिक आत्माओं के लिए। इतनी भावना तो रखनी चाहिए कि सर्वविरति आए या नहीं पर देशविरति चारित्र को अवश्य अपनाना है।
आप कल्पना करिए कि सर्वविरति चारित्र धर्म को चक्रवर्ती सम्राट, जिनके पास छः खण्ड का साम्राज्य, अथाह सम्पत्ति, समृद्धि, 32000 देव, हजारों लाखों नौकर चाकर सेवा में होते हैं, भी अंगीकार करते थे।
चारित्र की महिमा उनके हृदय में कितनी बसी होगी। जितने पाप जीवन में किए उसे धोए बगैर चले जाएंगे तो आत्मा का क्या होगा। पाप व पुण्य की श्रद्धा खत्म होती जा रही है। ऐसा सोचना चाहिए कि पाप का क्षय नहीं करूँगा तो आगे क्या होगा।
उन्होंने कहा अगले साल पूरे देश में 250 से 300 दीक्षाएं होगी। इस संसार के सुखों को छोड़कर चारित्र मार्ग पर जा रहे हैं इसका मुख्य कारण है पाप व पुण्य के प्रति श्रद्धा। परमात्मा के वचनों पर उन्हें श्रद्धा हो गई। उन्हें इसका ज्ञान हो गया कि संसार में आश्रव है, चारित्र में संवर, निर्जरा है ।
उन्हें परलोक की चिंता है। ऐसा विचार मन में आ गया तो समझना आत्मा के आध्यात्मिक गुणों का विकास शुरू हो गया है। इस पृथ्वी को टिकाने वाला चारित्र है। जब तक इस पृथ्वी पर चारित्रवान आत्माएं है, इस पृथ्वी का कुछ नुकसान नहीं होगा। जब उनकी विदाई हो जाएगी तो पृथ्वी का नाश निश्चित है।
नीतिशास्त्र में बताया गया जो अपने सद्गुणों, पराक्रम व सौम्यता से प्रसिद्ध है वह उत्तम पुरुष है। जिसकी सुसराल से प्रसिद्धि है वह उधम पुरुष के लक्षण है। श्रीपाल महाराजा नवमें भव में मोक्ष में जाएंगे क्योंकि उनमें त्याग का राग था। त्याग करना आसान है लेकिन त्याग का राग या राग का त्याग करना अत्यंत कठिन है।