जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने भगवान पार्श्व नाथ जी के महिमा स्वरूप भद्रबाहु स्वामी रचित श्री उपसर्गहर्म स्तोत्र जो जैन समाज मे सर्वाधिक प्रसिद्ध रहा है। वर्तमान मे अधिकांश जन जिसकी साधना उपासना मे रत है एवं भारत भर मे जिनके ज्यादा मात्रा मे पार्श्व नाथ मन्दिरो का निर्माण हो रहा है। ऐसे एक सौ आठ पार्श्व नाथ की वन्दना स्वरूप इस पाठ की रचना की गई। नियमित जिसका पठन पाठन करने से अनेक प्रकार के कष्ट निवारण व प्रत्यक्ष चमत्कार रूप देखा जा रहा है!
पार्श्व नाथ भगवान के जीवन मे सब से ज्यादा समता भाव का अभ्यास था! ध्यान अवस्था मे जहाँ कमठ तापस मे घमाली देव बन कर कष्टों पर कष्ट देता जा रहा था तो धरनेन्द्र पद्मावती देव देवी जो पूर्वभव मे नाग नागिन रूप मे लकड़ी मे अधजले थे पार्श्वनाथ ने अन्तिम समय बचाकर उनका कष्ट निवारण किया फल स्वरूप वे भी रक्षा हेतु उपस्थित हो गए! किन्तु तीर्थंकर पार्श्वनाथ के ह्रदय मे दुश्मन व मित्र दोनों के प्रति समताभाव रहा उनके द्वारा अनेकानेक जीवों का कल्याण किया गया!
वर्तमान समय मे भी परोक्ष रूप से वे भक्तों के कल्याण रूप मे सहायक बनते है! क्योंकि उनका नाम ही मंत्र रूप मे कार्य करने मे सक्षम है! आवश्यकता है हमारे जीवन मे उनके प्रति विशवास भाव की!विशवास अपने आप मे गुणदायक फलदायक बन जाता है! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा प्रारम्भ मे विस्तार के साथ पार्श्वनाथ के जीवन दर्शन व स्तोत्र पाठ सम्पन करा कर विधिविधान का विवेचन किया गया! महामंत्री उमेश जैन द्वारा आगत समाजसेवी जनों का स्वागत व सूचनाएं प्रदान कर दिनांक 16 नवंबर को सुबह 8 बजे लोगस्स सूत्र का जाप स्मरण की सूचना प्रदान की गई।