चेन्नई. विरुगम्बाक्कम स्थित एमएपी भवन में विराजित कपिल मुनि के सानिध्य में रविवार सवेरे सर्वसिद्धि प्रदायक महा प्रभावी भक्तामर स्तोत्र जप अनुष्ठान का तीसरा चरण आयोजित हुआ जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। जप अनुष्ठान की महत्ता बताते हुए कपिल मुनि ने कहा जप जीवन की अनमोल निधि है।
जप से पवित्र आभामंडल का निर्माण होता है जो कि व्यक्ति के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है। प्रतिदिन नियमित रूप से चेतना की विशुद्ध अवस्था को प्राप्त परमात्मा को नमन और उनके सद्गुणों का स्मरण करने से नमस्कार पुण्य का लाभ अर्जित होता है जिससे व्यक्ति की आंतरिक और बाहरी समृद्धि का विस्तार होता है।
बाद में प्रवचन में कहा जिन्दगी में क्रांति और चेतना के रूपांतरण के श्रेष्ठतम विकल्प है – संत समागम और वीतराग वाणी का श्रवण। संत समागम से जीवन जीने की समुचित कला का ज्ञान मिलता है। आध्यात्मिक बल को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है। संसार में शक्ति के जितने भी रूप हैं चाहे वो धन बल, जन बल, सत्ता बल, बाहुबल हो । एक आध्यात्मिक बल के समक्ष सारे बल तुच्छ और नगण्य है।
इसलिए जीवन का उद्देश्य आध्यात्मिक बल को बढ़ाने का होना चाहिए। इसके अभाव अन्य बल परेशानी का सबब भी बन सकते हैं। उन्होंने कहा इस संसार में प्राणियों का जन्म धारण करना आम बात है मगर जीवन को उपलब्ध करना एक विशिष्ट घटना है। शरीर, मन और आत्मा का समग्रता से स्वस्थ होना ही जीवन का वास्तविक रूप है।
हमें मिला हुआ शरीर बेहद नाजुक और पल पल में बदलने वाला मन अत्यन्त भयंकर है इन पर नियंत्रण की साधना बेहद जरुरी है । वर्तमान दौर में हमारा सच्चा मित्र देव गुरु धर्म ही हो सकते हैं। जो विपत्ति में सहारा और सुरक्षा कवच बनते हैं । मित्र की परिभाषा यही है जो विपत्ति काल में संरक्षण दे। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में धर्म का सहारा बहुत ही आवश्यक हो गया है।
धर्म को अपनाये बगैर अपनी खैर नहीं। कर्मों का खतरा व्यक्ति के सिर पर प्रतिपल मंडरा रहा है। व्यक्ति को अपनी अवस्था के साथ जीवन की व्यवस्था तय करनी चाहिए। जो अवस्था प्रभु भजन और संसार से निवृत्ति लेने की है उस अवस्था में संसार की आपाधापी में मशगूल होना हितकर और उचित नहीं। यदि जीवन में हित, सुख और आरोग्य का वरदान चाहते हो तो पुण्य और धर्म के पथ पर बढऩे का पुरुषार्थ करना चाहिए। संघमंत्री महावीरचंद पगारिया ने संचालन किया ।