यस यस जैन संघ नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्मबन्धुओं जिनवाणी में मोक्ष मार्ग का निरूपण किया है मोक्ष की अभिलाषा प्रत्येक जीव को होती है जिसकी पूर्ति किसी न किसी भव में निर्वाचित रूप से होती है। आज प्रमाद के कारण नवकार मंत्र का स्मरण नहीं करते। व्यर्थ की बातें कितने ही घंटे कर लेते है पर नवकार मंत्र के स्मरण के लिए कहते है कि टाइम नही मिलता।
ज्ञानीजन कहते है सच्ची श्रद्धा के बिना नवकार का स्मरण भी सम्भव नही है। धर्म से जुड़ने के लिए कई प्रयास करने पड़ते है। धर्म से जोड़ने के लिए बच्चों को प्रभावना दी जाती है। ये प्रभावना लालच नही है। प्रभावना पाने के लिए यदि कोई सामायिक कर ले तो उसे बहुत लाभ होता है। दूसरे धर्म से जोड़ने के लिए कुछ प्रयत्न नही करने पड़ते पर जैन धर्म से जोड़ने के लिए प्रभावना का प्रलोभन देना पड़ता।
बच्चो के पास माता-पिता संसार के भोग विलास की बातें ज्यादा करते है जबकि धार्मिक चर्चा नहीं करते। यदि माता पिता, 15-20 मिनट बच्चों को धर्म का ज्ञान दे, चर्चा करे तो बच्चो में धर्म के प्रति जागृति हो जायेगी। प्रेम से बच्चों को धर्म के लिए प्रेरणा दो। प्रेरणा देने का प्रयास निरन्तर जारी रखो एक न एक दिन बच्चे अवश्यक प्रेरित होगे । चन्दन के पेड़ से आने वाली सुगंध दुर्गंध में बदल सकती है यदि चन्दन के फूल विकृत हो जाये तो परन्तु ऐसा दुर्लभ ही पाया जाता है क्योंकि पुद्गल का स्वभाव ही सड़न गलन विध्वंस है। संयम के मार्ग का धर्म का बोध देने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है। निरन्तर प्रयास करने से ही हम बच्चो और बड़ो को धर्म से जोड़ पायेंगें। जैसे बच्चे कड़वी दवा पीना पसन्द नही करते पर माँ जबरदस्ती दवा देती है।
जिससे रोग मिट जाये। वैसे ही धर्म से जोड़ने के लिए जबरदस्ती करनी पड़े तो करना चाहिए क्योंकि धर्म तो हर हाल में लाभ ही देगा। हाँ जबरदस्ती करने वाले के मन में अशुभ भाव नही होने चाहिए। संसार मे दिखाये जाने वाले चमत्कार सच्चे नहीं होते यदि चमत्कार सच्चे होते हैं। यंत्र मंत्र का सेवन करने वाला स्वयं दुःखी होता है। वह चमत्कार दिखा कर धन कमाता है। यदि वास्तव में यंत्र मंत्र से सब ठीक हो जाता दुख दूर होते तो फिर ससार में कोई दुखी नही होता । दुःख तो केवल धर्म -ध्यान से ही दूर होता है। इसलिए तीर्थकंर भी तो संयम के मार्ग पर आरुढ हो जाते है। जो भी चमत्कार के चक्कर में पड़ता है वो धोखा ही पाता है। चमत्कार तो धर्म के प्रभाव से ही होता है। इसलिए मिथ्यात्वियों के पाखंडीयो के चक्कर में मत पड़ो । ज्ञानी जन कहते है कि धर्म की शरण में आओ ।
मात्र धर्म ही सब दुखो से छुटकारा दिलाने में समर्थ है एक जमाना था प्लास्टिक में कुत्तों और भिखारियों को भोजन कराते थे। पर और स्वयं सोने, चाँदी या स्टील के बर्तनों में भोजन करते थे पर आज सोने चाँदी के बर्तन अलमारी में, कुत्तों को स्टील में और स्वयं प्लास्टिक के बर्तन में भोजन करते है जब पुण्यवाणी घटती है तो प्लास्टिक के बर्तन में खाने की इच्छा होती है। चूना मिट्टी खाने का मन करता है। पुण्यवाणी बढ़ती है तब खीच, घी बाटी, शीरा आदि खाने का मन करता है। इसलिए पुण्यवाणी को जीवित रखो। ऊपर की ओर बढ़ाओ। नीचे मत गिराओ । यह जानकारी ज्ञानचंद कोठारी ने दी।