पापनाशम, तन्जावुर (तमिलनाडु): संसार में रहने वाला आदमी अपने दैनिक कार्यों में कुछ न कुछ पाप कर लेता है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए पूर्णतया पाप से बचाव तो संभव नहीं है। गृहस्थ को चाहिए कि वह जितना पापों का अल्पीकरण हो सके, उसे करने का प्रयास करना चाहिए। जैन धर्म में अठारह पाप बताए गए हैं। प्रणातिपात, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, राग-द्वेष आदि इन अठारह पापों को जानकर आदमी को पापों से अपना बचाव करने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को पापकारी प्रवृत्तियों से बचते हुए अपनी आत्मा का कल्याण करने का प्रयास करना चाहिए। पापों को जानकर पाप से दूर रहने और अपनी आत्मा का कल्याण करने का पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तन्जावुर जिले के पापनाशम गांव स्थित गवर्नमेंट हायर सेकेण्ड्री स्कूल में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान किया।
रविवार की प्रातः आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ दारासुरम से मंगल प्रस्थान किया। दक्षिण भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक ‘पोंगल’ के कारण प्रत्येक घरों की विशेष साफ-सफाई के बाद घर के मुख्य दरवाजे के सामने बनी रंगोलियां लोगों के उत्साह को दर्शा रही थीं। आज के विहार मार्ग में दोनों ओर खड़े हरे-भरे वृक्षों की पंक्तियां मार्ग को प्राकृतिक सुषमा प्रदान कर रहे थे।
वहीं खेतों में छाई हरियाली भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। मार्गवर्ती गांवों के लोगों को अपना मंगल आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री निरंतर अग्रसर थे। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री तन्जावुर जिले के पापनाशम गांव स्थित गवर्नमेंट हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पधारे। इसी गांव में आर्ट आॅफ लिविंग के श्री श्री रविशंकर का जन्म भी हुआ है। इस कारण आचार्यश्री का यहां पधारना लोगों को और अधिक हर्षित बना रहा था।
पापनाशम गांव के स्कूल से आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पापों से बचने का पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी बात-बात पर झूठ बोलता है। आदमी कभी लोभ में तो कभी गुस्से में तो कभी हास्य में झूठ बोलता है। जितना हो सके झूठ के प्रयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अनाश्वयक रूप से होने वाली हिंसा से भी बचने का प्रयास करना चाहिए।
हरी घास से बचकर चलने, जमीकंद आदमी का त्याग कर आदमी दैनिक जीवन में होने वाली अनाश्यक हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी चोरी और गुस्से से बचाव कर भी अनावश्यक हिंसा से बच सकता है। पापों से युक्त आत्मा भारी जो गर्त की ओर जाने वाली और पापों से मुक्त आत्मा हल्की होती है तो ऊध्र्वागमन कर सकती है। इस प्रकार आदमी को पापों को जानकर और उनसे बचने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात विद्यालय के हेडमास्टर श्री मणि अर्सन तथा स्थानीय लायंस क्लब के मंत्री श्री एस. पार्थिबन ने आचार्यश्री के दर्शन कर अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।