चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने भगवान महावीर की अंतिम देशना उतराधायन सूत्र के दौरान कहा कि आस्तिक से नास्तिक बनने का सौभाग्य राजा परदेसी को मिला था।
उन्होंने अपनी आत्मा को परमात्मा से मिला लिया था। आत्मा का जब तक परमात्मा से मिलान नही होगा तब तक जीवन के दुख नही मिट सकते हैं। दो आत्माओं के मिलन के लिए खुद की आत्मा को पहले सुद्ध करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि जब मानव का धरती पर जन्म होता है तो उसकी आत्मा बिल्कुल शुध्द होती है। उसके अंदर थोड़ा सा भी दोष नहीं होता है। लेकिन जब बच्चा बड़ा होकर संसार के मोह माया में फन्स कर गलत मार्गो पर बढ़ता है तो उसकी आत्मा की शुद्धता धीरे धीरे समाप्त होती जाती है।
एक समय ऐसा भी आता है कि मनुष्य की आत्मा शुध्द हुए बिना ही शरीर त्याग देती है और भटकती रह जाती है। उन्होंने कहा कि जन्म हुआ है तो इसका मतलब यह नहीं कि संसार मे पूरा जीवन लगा कर नर्क में चले जाएं। जन्म होने का मतलब जीवन का उद्धार करना है ना कि बेकार करना है।
भगवान महावीर कहते हैं कि मनुष्य जीवन मे जितनी साधना आराधना कर लेगा उतना ही उसका जीवन सफल हो जाएगा। संसार मे फस कर जीवन को नहीं समझा तो यह मौका वापस नहीं मिलेगा। जो मौका भगवान को नहीं मिलता है वह इंसान को मिला है। इसको गवाने के बजाय जीवन का उद्धार कर परमात्मा बन जाना चाहिए। अन्यथा जीवन के कष्ट कभी दूर नहीं होंगे।