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ज्ञान वाणी

चौदह पूर्व का सार है नवकार: मुनि संयमरत्न विजय

चौदह पूर्व का सार है नवकार: मुनि संयमरत्न विजय

साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में जारी नवदिवसीय नवकार महामंत्र की आराधना के पांचवें दिन मुनि संयमरत्न विजय ने एसो पंच नमुक्कारो पद के वर्णानुसार एलुर, सोनागिरि (जालोर), पंचासरा,चंद्रावती, नडिय़ाद, मुछाला महावीर, कापरड़ाजी व रोजाणा तीर्थ की भाव यात्रा करवाई।

मुनि ने बताया कि नवकार के प्रभाव से हमें लोभ से निवृत्ति और संतोष की प्राप्ति होती है। नवकार के कुल 68 अक्षर होते हैं और 6+8 का योग करने पर 14 होते हैं। नवकार में चौदह बार न(ण) आता है जो नौ तत्व और पांच ज्ञान का प्रतीक है।

14 का अंक और चौदह ‘न’ इस बात का भी संकेत करते हैं कि नवकार मंत्र चौदह पूर्व का सार है। जिनशासन का सार और चौदह पूर्वों का समावेशक यह नवकार मंत्र जिसके मन-मंदिर में प्रतिष्ठित है, उसका संसार कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

बिना ज्ञान के दया धर्म का पालन करना असंभव है। ज्ञानी व्यक्ति एक श्वासोच्छवास में जितने कर्मों की निर्जरा करता है, उतने कर्मों की निर्जरा करने में अज्ञानी को अनेक वर्ष लग जाते हैं। इस संसार में ज्ञान ही सुख का कारण है।

ज्ञान जन्म-जरा और मृत्यु को मिटाने वाला परम अमृत है। ज्ञान मोक्ष प्राप्ति का अनमोल साधन है।

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