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चौथमलजी महाराज एकता, अहिंसा और साधर्मिक भक्ति के अग्रदूत थे – युवाचार्य महेंद्र ऋषि

चौथमलजी महाराज एकता, अहिंसा और साधर्मिक भक्ति के अग्रदूत थे – युवाचार्य महेंद्र ऋषि

एएमकेएम में सात वार में रविवार पर हुई चर्चा

एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी महाराज ने बुधवार को सात वार की प्रवचनमाला में रविवार पर श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा रविवार उजाला देने वाला है। इसे सन्नी डे भी कहा जाता है। रवि का तेज भारी होता है। यह प्रभावकारी और आनंद दिलाने वाला है। उन्होंने कहा सूर्य के उदित होने पर साधु चर्या प्रारंभ होती है। सूर्य का प्रकाश यत्ना के लिए, उसका ताप जीव विराधना से बचने के लिए है।

उन्होंने कहा सूर्य का प्रकाश संपूर्ण संसार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि सूर्य जगाता है। आज के दिन कई लोग सोये रहते हैं लेकिन यह सक्रियता का संदेश देने वाला है। जो सक्रिय होता है उसे ऊर्जा प्रदान करने वाला है। जिसका रवि तेजस्वी है, वह सफलता प्राप्त करता है। सबके लिए उसकी उपस्थिति विशेष प्रकार के प्रभाव से भर देती है। जो पितृ भक्त होता है, उसका सूर्यबल बढ़ता है। जहां- जहां पिता का सम्मान है, वहां आपका भी सम्मान बढेगा। यह बड़ों की विश्वसनीयता का प्रतीक है।

उन्होंने चौथमलजी महाराज का पुण्य स्मरण करते हुए बताया कि उस महापुरुष का जन्म, दीक्षा व देवलोकगमन रविवार के दिन हुआ। वे दिवाकर की उपमा से अलंकृत हुए। 148 वर्ष पूर्व उस महापुरुष ने जन्म लिया। अन्य धर्मों के अनुयायियों में भी उनकी आस्था बनी हुई थी। ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व के धनी चौथमलजी महाराज ने 18 वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की। 16 वर्ष की उम्र में उनका विवाह हो गया लेकिन जिस समय बहू को घर लाने की बात थी, मां ने कहा मैं दीक्षा ले रही हूं।

युवाचार्य प्रवर ने बताया कि उन्होंने भी विवाह का त्याग कर दीक्षा ले ली। उनकी वाणी के प्रभाव से कई संत- सती बने और वह शाखा दिवाकर के नाम से प्रसिद्ध हुई, जिनकी किरणों से पूरा भारतवर्ष आलोकित हुआ। उनके प्रवचन सुनने हजारों की जनमेदनी पहुंचती थी। उन्होंने प्रवचन के माध्यम से जैनत्व, भारतीय संस्कृति का विश्लेषण इस तरह से किया किया कि अनेक राजा उनके भक्त बने।

उन्होंने कहा वे एकता, अहिंसा, साधर्मिक भक्ति के अग्रदूत थे। उनके प्रवचनों के साथ भजन भी प्रेरणादायी होते थे। वे बहुत सुंदर ढंग से समझाते थे। उनके प्रवचन हृदय को छू लेते थे। उनकी आवाज झोपड़ी से महलों तक गूंजती थी। हम भाग्यशाली हैं कि हमें ऐसे महापुरुष मिले। उन्होंने 55 वर्ष संयम जीवन के बिताए और हमेशा एक तरह की बात की। उन्हीं की प्रेरणा थी कि 1949 में स्थानकवासी श्रमण संघ बना। उनके शिष्य उपाध्याय कस्तूरचंदजी ने संघ- समाज के लिए अनुपम कार्य किए। उन्होंने कहा जब हम उनके आदर्शों को अपनाएंगे तो जिनशासन जयवंत हो जाएगा। यदि हम एकता और साधर्मिक भक्ति को अपनाएंगे तो ही हमारा धर्म आगे बढ़ेगा। हमारी पहचान सच्चे जैनी के रूप में हो।

इस मौके पर महासंघ ने मुमुक्षु शिवम बाफना का जयघोष के बीच बहुमान किया। मुनि हितेंद्र ऋषिजी ने बताया कि गुरुवार को आठ वार की प्रवचनमाला की श्रृंखला में परिवार पर प्रवचन होंगे। महासंघ तमिलनाडु के मंत्री धर्मीचंद सिंघवी ने कहा कि हमारा सौभाग्य है कि मुमुक्षु शिवम बाफना की दीक्षा की घोषणा इस चातुर्मास के दौरान हुई। आज हम उनकी खोल भर रहे हैं। इस दौरान चातुर्मास में कार्यरत भोजन समिति, तपस्या समिति, प्रवचन समिति, आवास निवास समिति, वैयावच्च समिति, पारणा समिति, नवकार जाप समिति, पार्किंग समिति, जीवदया एवं अन्नदान समिति, आत्मध्यान शिविर समिति, पंडाल व सजावट समिति के सदस्यों का सम्मान किया गया। राकेश विनायकिया ने सभा का संचालन किया।

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