चेंगलपेट, कांचीपुरम (तमिलनाडु): जन-जन को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ शनिवार को चेंगलपेट नगर में पधारे ेकािंअपने आराध्य को अपने घर-आंगन में पाकर चेंगलपेटवासी अतिशय आह्लादित नजर आ रहे थे।
शनिवार को प्रातः की मंगल बेला में आचार्यश्री पालूर से मंगल प्रस्थान किया। प्रातः हल्की ठंड और कोहरे का असर देखने को मिल रहा था, किन्तु जैसे-जैसे सूर्य आसमान में चढ़ता गया, कोहरा और ठंड भी गायब होती चली गई और गर्मी ने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। आचार्यश्री अपनी अहिंसा यात्रा का कुशल नेतृत्व करते हुए निरंतर गतिमान थे।
आचार्यश्री लगभग तेरह किलोमीटर की यात्रा कर चेंगलपेट नगर की सीमा में प्रवेश किया तो अपने आराध्य के आगमन से आह्लादित चेंगलपेटवासी अपनी नगर की सीमा पर करबद्ध और कतारबद्ध खड़े थे। इसके साथ ही आज के आचार्यश्री के प्रवास स्थल प्रसन्न विद्या बाल मंदिर के विद्यार्थी भी उपस्थित थे। अहिंसा यात्रा के संकल्पों के स्लोगनों को हाथ में लिए आचार्यश्री के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। तेरापंथ के वर्तमान दिनकर परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी मानों चेंगलपेटवासियों के स्वर्णिम सूर्योदय लेकर आए थे। आचार्यश्री जैसे ही नगर की सीमा के पास पहुंचे पूरा नगर जयकारों से गुंजायमान हो उठा। भव्य जुलूस के साथ आचार्यश्री नगर स्थित प्रसन्न विद्या बाल मंदिर के प्रांगण में पहुंचे।
विद्यालय प्रांगण में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधना के क्षेत्र में ध्यान का बहुत महत्त्व है। जीवन दो तत्त्वों का योग है- आत्मा और शरीर। अध्यात्मक साधना मूल है आत्मा को जानना, उसके आसपास रहना और मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ना। ध्यान एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा आत्मा के आसपास रहने अथवा मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। एक केन्द्र, एक जगह मन को केन्द्रित करना ध्यान कहलाता है। शरीर की चंचलता, वाणी का प्रयोग और मन के भीतर उभरते विभिन्न भावों को रोक एकाग्र होना एक चिंतन अथवा एक बिन्दु पर केन्द्रित करना ध्यान होता है।
शरीर स्थिर हो जाए और मन एकाग्र हो तो ध्यान की साधना हो सकती है। एकाग्रता की अवस्था में मंत्र का जप विशिष्ट फलदायक हो सकता है। आदमी की हर प्रवृत्ति के साथ ध्यान जुड़ जाए तो कितना अच्छा हो सकता है। हमारे मन के भीतर के भाव शरीर को चंचल बना देते हैं। ध्यान एक प्रकार की धार है, तलवार है, चाकू है। उसका प्रयोग कहां हो इसका विवेक भी होना आवश्यक होता है। विवेकपूर्ण ध्यान लाभकारी हो सकता है। ध्यान के चार प्रकार बताए गए हैं। इनमें आदमी को आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान में जाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को ध्यान के माध्यम से आत्मा के आसपास रहने का प्रयास करना चाहिए। समय की अनुकूलता के अनुसार शरीर को स्थिर और मन को किसी पवित्र स्थान पर स्थापित कर आत्मा के आसपास रहने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।
मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्यश्री ने चेंगलपेटवासियों को अपने श्रीमुख पहले अहिंसा यात्रा के संकल्प प्रदान किए। तदुपरान्त सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधाराणा) भी प्रदान की। इसके उपरान्त श्री सुरेन्द्र कुमार गादिया, एस.एस. जैन संघ की ओर से श्री मोहनलाल गडवानी, सनातन धर्म की ओर से श्री राधेश्याम लखोटिया, विद्यालय की प्रिंसिपल श्रीमती लक्ष्मी, छात्रा दिप्ति ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। स्थानी महिलाओं ने गीत के माध्यम से आचार्यश्री का अभिनन्दन किया। स्कूली छात्राओं ने प्रेक्षा गीत का संगान कर आचार्यश्री के चरणों में अपनी प्रणति अर्पित की।
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जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा