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चिर युवा: आचार्य श्री महाश्रमण

चिर युवा: आचार्य श्री महाश्रमण
“47वें दीक्षा दिवस : युवा दिवस पर शत शत नमन”
दीक्षा दूसरा जन्म हैं, वह महान् भाग्योदय से प्राप्त होता हैं! यह “राज मार्ग” हैं, मोक्ष की ओर जाने का चरणन्यास हैं, इस पर चलने वाला धन्य हो जाता हैं। 
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के सरताज, एकादशम पटधर महामनस्वी, महातपस्वी, समण संस्कृति के उदगाता, शान्तिदूत आचार्य श्री महाश्रमणजी ऐसे ही विरल व्यक्तित्व के धनी हैं।
सरदारशहर (राजस्थान) के दुगड़ परिवार में जन्मे बालक मोहन ने आचार्य श्री तुलसी की आज्ञा से मुनि श्री सुमेरमलजी लाड़नू से आज ही के दिन संवत 2031 वैशाख शुक्ला चौवदस 05-05-1974 को सरदारशहर में दीक्षा ग्रहण की।
आचार्य महाश्रमण उन महान संत विचारकों में से एक हैं, जिन्होंने आत्मा के दर्शन को न केवल व्याख्यायित किया, अपितु उसे जीया भी हैं। वे जन्मजात प्रतिभा के धनी, सूक्ष्मद्रष्टा, प्रौढ़ चिंतक एवं कठोर पुरुषार्थी हैं। उनकी प्रज्ञा निर्मल एवं प्रशासनिक सूझबूझ बेजोड़ हैं।
एक विशुद्ध पवित्र आत्मा जिनके कार्यों में करुणा, परोपकारिता एवं मानवता के दर्शन होते हैं तथा जिनकी विनम्रता, सरलता, साधना एवं ज्ञान की प्रौढ़ता भारतीय ऋषि परंपरा की संवाहक दृष्टिगोचर होती हैं।
आपने जिस उत्कृष्ट वैराग्य भाव से संयम ग्रहण किया, उससे भी उत्कृष्ट भाव से सम, शम, श्रम की त्रिवेणी के साथ अपने मुनि जीवन को पाल रहे हैं।
कहा जाता है कि व्यक्ति के सम्यक् कर्त्तव्यनिष्ठा के साथ आचार, विचार, व्यवहार के पालन से उसका व्यक्तित्व महान बन जाता हैं। वह शिष्य गुरू की आँखों का तारा बन जाता हैं, उनकी कृपा दृष्टि का पात्र बन जाता हैं।
आपकी संघ और संघपति के प्रति प्रगाढ़ आध्यात्मिक श्रद्धा, विनम्रता, पापभिरूता, सर्वात्मना समर्पण भावना से अभीभूत हो आचार्य श्री तुलसी ने आपको मुनि मुदित से महाश्रमण मुदित और आचार्य महाप्रज्ञजी का अन्तरंग सहयोगी बनाया।
आचार्य महाप्रज्ञजी ने आपकी त्यागमय जीवन शैली से आपको महातपस्वी और अपना उत्तराधिकारी बनाया। आचार्य महाश्रमण एक साहित्यकार, परिव्राजक, समाज सुधारक एवं अहिंसा के व्याख्याकार हैं।
चरैवेति-चरैवेति‘ इस सूक्त को धारण कर अहिंसा यात्रा के माध्यम से लाखों-लाखों ग्रामवासियों एवं श्रद्धालुओं को नैतिक मूल्यों के विकास, साम्प्रदायिक सौहार्द, मानवीय एकता एवं अहिंसक चेतना के जागरण के लिए अभिप्रेरित कर रहे हैं।
अत्यंत विनयशील आचार्य श्री महाश्रमण अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान एवं अहिंसा प्रशिक्षण जैसे मानवोपयोगी आयामों से समाज में तनाव, अशांति तथा हिंसा से आक्रांत विश्व को शांति एवं संयमपूर्ण जीवन का संदेश दे रहे हैं। 
आज उनके दीक्षा दिवस को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। युवा वह है जो उत्साही और आशावादी हैं।
जो सम्यक् स्वाध्याय और अच्छा चिन्तन करता हैं, उसका यौवन अक्षुण रहता हैं। मानसिक प्रसन्नता से “चिर युवा” रह सकते हैं। आचार्य प्रवर “चिर युवा” हैं
शांत एवं मृदु व्यवहार से संवृत्त, आकांक्षा स्पृहा से विरक्त एवं जनकल्याण के लिए समर्पित युवा मनीषी आचार्य महाश्रमण भारतीय संत परंपरा के गौरव पुरुष हैं।
आज आचार्य श्री महाश्रमणजी को उनके 47वें दीक्षा दिवस पर भावभीनी वन्दना अर्पित करते हैं। आप निरन्तर हमारा मार्गदर्शन करते हुए आप भी अपने लक्षित मंजिल की ओर गतिशील बने।
आपश्री के आध्यात्मिक उज्जवल भविष्य की “मंगलकामना” के साथ आपसे यही आशीर्वाद चाहते हैं कि हम भी संयम पथ अपना कर अपना आत्मकल्याण करे।
स्वरुप चन्द दाँती
प्रचार प्रसार प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, चेन्नई

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