हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया आदि ठाणा 7 साता पूर्वक विराजमान है। वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं वह इस प्रकार हैं।
बंधुओं जैसे हमारे को नित्य कहते हैं कि जैसे भावों को शुद्ध शुद्ध करने के लिए जारी स्तोत्र है एक नेत्री दो प्रसंता तीन करुणा और चार कृतज्ञता सुख दुख का पुण्य पुण्य नगरी करुणा मुदिता पेक्षा भावना का ततचइत मित्रता करुणा प्रशस्ता कुर्ता प्रस्थान इनसे चित्त को सुभाषित किया जा सकता है।
पहला भाव है मैत्री भाव एक ऐसी मंगल भावना जो सारे विश्व को एक सूत्र में बांधे मित्र यानी सब के प्रति प्रेम भाव किसी के प्रतिवेर विदृश नहीं मित्र ही तो वह आधार है जो एक और एक ही तरह सबको आपस में जोड़ती है
बादल से बरसती बिखरती बुंदो को सागर में विराट तादेती है अगर मैत्री भाव नहीं है तो भक्ति भी नहीं है ऐसा कि कोई व्यक्ति का नहीं है भाईचारे की कोई भावना नहीं है मैं सिर्फ विश्व शांति का आधार है विश्व प्रेम का प्राण है सौमित्र भाव जरूर रखे तोहीअपना कल्याण होगा यही जिंदगी की रीत है।
जय जिनेंद्र जय महावीर