तिरुपति. साध्वी डा. कुमुदलता अन्य सहवर्तिनी साध्वीवृंद के साथ रविवार को तिरुपति स्थित करचान मंडपम पहुंची जहां स्थानीय श्रद्धालुओं ने अगवानी की। यहां आयोजित धर्मसभा में साध्वी कुमुदलता ने कहा अगर जीवन को निश्चिंत करना है उसे अपने मन को स्थिर करना होगा। मानव मन की दो धाराएं हैं-चिंता की धारा और चिंतन की धारा। जिसके जीवन में दिव्य विचार नहीं हैं उसका चिंतन भी दिव्य नहीं हो सकता। जिसका चिंतन दिव्य नहीं होता उसी को चिंता सताती है फलत: वह कुंठाग्रस्त होकर हीनता का शिकार हो जाता है।
निश्चिंत जीवन जीने का सूत्र है-जो तुम्हारे पास है उसे दूसरों को देने में तुम स्वतंत्र हो अत: मुक्त मन से देना सीखो। अपनी शक्ति का लाभ आवश्यक पात्र को नि:स्वार्थ भाव से देना चाहिए। यह सम्यक चिंतन मन में सतत रहे कि मेरे पास जो कुछ है वह मैं दूसरों तक पहुंचाऊं। जो अपना बांटता है उसे सहज में ही दूसरों से बहुत कुछ मिल जाता है।
कोई धन ही बांटने की बात नहीं है देने के लिए एक मुस्कराहट भी दी जा सकती है। कहावत है समय, समझ, सामग्री और सामथ्र्य को दूसरों के हित में लगा दो। सृष्टि का एक सनातन नियम है जो दिया जाता है वहीं लौटता है। आज तक हमारी जीवन शैली ऐसी रही है कि अपना कुछ देना नहीं और दूसरों से सतत लेते रहना। काम करना नहीं और वेतन लेना है। माल कम देना और मुनाफा ज्यादा लेना है।
संसार में सब सुख के ग्राहक बनते हैं पर सुख देनेवाला कोई नहीं है। वस्तुत: सुख और सम्मान लेने की नहीं देने की चीज है। जो तुम दे सकते हो वह अगर ईमानदारी से देने लग जाओ तब जो पाना है वह पाया जा सकता है। जीवन में जिसने बांटा उसीने पाया और जिसने संभाला उसने गंवाया।
स्मरण रहे कि जब देना ही है तो शत्रु हो या मित्र, सज्जन हो या दुर्जन सभी को दो। उसमें भेद मत रखो। हम सब कुछ भी दे डाले तब भी हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। बाहर की दुनिया से हम जितना मर्जी ले लें लेकिन हमारा शरीर इतना तुच्छ है कि उसके पास कुछ भी नहीं रह सकेगा यह बिलकुल सनातन सत्य है।
प्रत्येक व्यक्ति के पास देने के लिए तनबल, मनबल, बुध्दिबल और वाणीबल है। उसे परहित में खर्च करने की इमारी पूर्ण स्वतंत्रता भी है। यदि मन के द्वारा हम दूसरों की भलाई का चिंतन करते हैं तो लोग भी हमारी भलाई का चिंतन किये बिना नहीं रहेंगे। साध्वीवृंद सोमवार सवेरे यहां से प्रस्थान कर रामापुरम स्थित ब्रह्मर्षि गुरुवानंद स्वामी आश्रम पहुंचेंगी।