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चार प्रकार के होते है: दर्शन मुनि जी मासा

चार प्रकार के होते है: दर्शन मुनि जी मासा

पुज्यश्री दर्शन मुनि जी मासा ने कहा जीव चार प्रकार के होते है ठाणांग सूत्र में चार प्रकर की चोभंगी हे।

1; आहार भी करते, निहार भी करते हे संसारी जीव होते है। संसारी जीव ग्रहण करता रहता है जो त्यागता है उसका हमें त्याग करना, सामायिक के पहले चारों आहार का त्याग कर‌ ले। शरीर की क्रिया को निहार कहते है।

2) आहार तो करता है निहार नहीं करता है ,,गर्भ के जीव

गर्मी में आहार, शरीर, इंद्रिया, शवासोश्वास, भाषा पर्याप्ति लेकर आता है। सबसे पहले आहार ग्रहण करता है, फिर शरीर बना,. इंद्रिया बनी, श्वासोश्वास, भाषा, मन पर्याप्ति प्राप्त करता है

3 ) निहार तो करते है आहार नहीं करते है वो जीव संथारे वाले जीव है आहार का त्याग कर लेते है, 18 पाप का त्याग, धन उपकरण का त्याग मनोरथ का चिंतन करता है 4 शरण को स्वीकार कर लेता है कुंटुम्ब, परिवार, शरीर का मोह छोड़ देता है। अंतिम समय में संथारा आये

 (4) आहार नहीं करते है, निहार भि नहीं करते है सिद्ध होते हैं। भगवान अशरीरी हो गये, आहार, निहार की भी जरूरत नही।।

पुज्य प्रर्वतक की प्रकाश मुनि जी मासा – बोधिदाता… श्री सोभग्यमल जी महारासा वे आनन्द दाता सदगुरु थे, क्योंकि आनन्द मिलना मुश्किल,, वे पुण्य से उपर उठाते है, पुण्य भी छोड़ने योग्य हे पुण्य को दो तत्व से जोड़ा है हेय, उपादेय.., ज्ञेय जानने योग्य है जब तक मुक्ति नहीं हो वहाँ तक उपादेय, तत्व में विशिष्ट जानने योग्य है, वितराग वाणी…सामग्री, पुण्य देता है, धर्म नहीं देता है। जिस आत्मा में बैठ जाती है कि पुण्य छोड़ने योग्य है, उसके लिये साधन, हेय समझा जाता है।

पुण्य भगाने योग्य नहीं हे, पुण्य हेय माना है, छद‌मस्त जीव इसको भोगने योग्य समझता है। पुण्य परमात्मा कहते हैं, पुण्य के कार्य छोड़ने योग्य है पुण्य भोगने योग्य पुण्य का भोग, सामग्री छोडने योग्य है, जो गृहण करता हे आरंभ, माया, प्रमादी होता है

 माई पमाइ पुणं य गभं

बार-2 कोन जीव गर्भ में आयगा? मायावी, प्रमादी जीव बार-बार जन्म करके गर्भ में आता है। जन्म, मरण करना होता है मरने से क्या डरना, मोत कभी आये नहीं ऐसा होगा नहीं। मोत के लिए शास्त्र में आयुष्य पुर्ण, भव स्थिति शब्द आता है ।

मार- दु:ख पाने वाला, जन्म हुआ शरीर छोड़ना होगा। शरीर लीज पर मिला, लीज जिस दिन खत्म शरीर छोड़ना होगा माया, प्रमाद छोड़ना पड़ेगा। माया, प्रमाद में हम दोनों में उलझे हुये है। पग पग पर माया करते है, धर्म में प्रमाद चलता रहता है। प्रमाद के लिये नींद नहीं खुलती है प्रमाद धर्म में होता है संसार में प्रमाद नहीं होता है। आप आये धर्म तत्व की अनुमोदना करने आये, खाने के लिये नही,, धर्म से जुडा है तो आया है, लोकलाज, व्यवहार धर्म का तत्व आपके साथ हे ।

थोड़ा भाव बडाना, भाव प्रबल हुए जीव आगे बढ़ने से गर्भ में लेने योग्य करमो को काट देता है सदभाव, शुभ भाव, शुद्ध भाव अप्रमत्त दशा की ओर बढ़ता है सदभाव- करुणा का भाव, सम्यक्व की ओर बढ़ता है। शुभ भाव धर्म का भाव ।

प्रमाद से बचे, आराधना,,, दत्त चित्त होकर करे। प्रमाद के साथ

धर्म नहीं चलता धर्म के साथ प्रमाद नहीं चलता।

नींद आती है रुचि नहीं, यह प्रमाद जिस कार्य में रुचि हो तो नींद नहीं आती। धर्म क्रिया में रुचि नहीं यह प्रमाद, हम प्रमाद से अपनी आत्मा को दुःखी कर रहे है। धर्म के कार्य में रुचि ज्यादा नही, पाप के कार्य में रूचि ज्यादा।

रुचि पैदा करे, रुचि पैदा होने से धर्म पुष्ट होता है। भूख लगती है तब सब आहार अच्छा लगता है। पेट की पूर्ति हो गई उसके बाद अरुचि आती है।

धर्म के प्रति रुचि होती है तो प्रमाद नहीं आता है। धर्म कथा करने का मन होता है तो कथा में आनन्द जाता है। धर्म कथा स्वाध्याय का अंग है। इसमें रुचि होना जरूरी है। मन में उत्साह है याद नहीं है तो भी हो जाता है ।

अप्रमत्त रुचि से आत्मा पोषित होती है, धर्म रुचि आत्‌मा को आगे ले जाती है अधर्म में रुचि अप्रमाद है धर्म में रुचि अप्रमाद है, धर्म करते कर्म की निर्जरा होती है जीव जन्म मरण के चक्र से बचता चला जाता है। रुचि जागेगी धर्म अपने आप हो जायगा।

कषाय का फल जानते है रोकते नहीं ,,जन्म मरण से बचना है दो चीज से बचो,, माया ओर प्रमाद ।

जीवन जीने की धर्म की कला, मोक्ष जाझे का रास्ता बताया । उत्साह हो तो धर्म तत्व पैदा होता है। धर्म का अनुत्साह पाप पैदा करता है। उत्साह की कमी से धर्म किया नहीं की तो भी क्या । जीव पाप करेगा धर्म में रुचि नही? हमारा समय धर्म में कि पाप मे ज्यादा जाता है। रुचि होगी सामायिक शुद्ध होगी।

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