नार्थ टाउन के ए यम के यम स्थानक में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्म बंधुओ :- चार अंग संसार में दुर्लभ है। पहला है मनुष्य जन्म, ये मनुष्य जन्म अनन्त -2 समय तक संसार में परिभ्रमण कर, प्रबल पुण्यवाणी होने पर पाता है। निगोद में जीव एक समय में 17 बार जन्म-मरण करता है। फिर भी मुक्त नहीं हो पाता। इतने जन्म-मरण के बाद भी निगोद में जीव को रहना पड़ता है ।
भयंकर वेदना निगोद मे मिलती है। ऐसी वेदना को सहन करते हुए जीव अकाम निर्जरा करता है। पुण्यवाणी को बढ़ाता है। पुण्यवाणी होने पर भी जीव आसानी से व्यवहार राशि में नहीं आ पाता। जब संसार से एक जीव मुक्त हो मोक्ष में जाता है तब निगोद से एक जीव व्यवहार राशि में आता है। मोक्ष की ओर ले जाने वाला और संसार से तारने वाला एक मात्र धर्म ही है । धर्म-ध्यान सिर्फ मनुष्य गति में ही कर सकते है। व्यवहार राशि में भी आने पर जीव स्थावर काय, तिर्यंच इन सबके भवो में जन्म मरण कर मनुष्य गति को पहली बार प्राप्त करता है। मनुष्य गति में आने पर भी धर्म- ध्यान मिलना दुर्लभ है। पर संसारी मानव धन को धर्म से ज्याद महत्व देते है। धन को पाने
के लिए मानव मात्र कमाना, खाना, पीना सोने को ही जीवन मान अपने मनुष्य जीवन व्यर्थ कर देते है। फिर एसे मनुष्य और पशु में क्या अन्तर है। मनुष्य अपने आचरण छोड़ देता है लेकिन गाय, बकरी आदि कई पशु अपने आचरण का त्याग नहीं करते । अर्थात वे शाकाहारी ही रहते है कभी मांस का सेवन नहीं करतेl
मनुष्य का शरीर शाकाहार के लिये ही बना है फिर भी अपने आचरण और धर्म को भूल मांसाहारी बन जाते है। इसलिए ज्ञानी जन कहते है मनुष्य जन्म मिलना तो फिर भी सरल पर सद धर्म, सद्आचरण मिलना दुर्लभ है। धर्म श्रवण करने के लिए भी बहुत बड़ी पुण्य वाणी चाहिए। जो पुरुषार्थ कर जिनवाणी श्रवण कर, उस पर श्रद्धा रख अपने जीवन में धारण कर लेता है वह काल को भी जीत लेता है और एक दिन अवश्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।