Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

चारित्र धर्म के दो भेद है: पुज्य जयतिलक जी म सा

चारित्र धर्म के दो भेद है: पुज्य जयतिलक जी म सा

रायपुरम जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि चारित्र धर्म के दो भेद है- अणगार धर्म, आगार धर्म । जो आंशिक ममत्व है, वह पाँच महाव्रत के लिए सक्षम नहीं है वो 12 अणुव्रत धारण कर निर्लिप्त रहकर अपना आत्म कल्याण कर सकता है! संसार में आप रहे, संसार आप में न रहे! जैसे समुद्र में नाव है, नाव में समुद्र नही। अंत संसार सागर से बचो। अतः भव्य जीवों कोो संसार सागर से उबारने के लिए 12 व्रत का निरूपण किया। उसमें पाँचवा व्रत है “परिग्रह” यह संसार का मूल है। इससे आसक्ती, हिंसा, कर्म बढ़ती है। अतः परिग्रह का त्याग न बताकर बल्कि मर्यादा बताई! चक्रवर्ती छ: खण्ड का परिग्रह होता है किंतु उसमें आसक्त हो तो उसकी गति नरक है। यदि आसक्ति न हो तो ममत्व न हो देवगति या मोक्ष गति। भरत चक्रवर्ती को संशय हुआ कि मेरा इतना परिग्रह है छे खण्ड का राज्य है तो मेरी गति क्या होगी? भगवान महावीर ने फरमाया कि हे भरत- तु चरम शरीरी है इसी भव में मोक्ष जायेगा।

जिनवाणी तरण तारण है जिसे सुनने से अपना कल्याण है यदि श्रद्धा भक्ति न हो तो कर्म बंध की अवस्था भी हो सकती है। यदि भाव लेश्या प्रशस्त नहीं है कर्मबंध हो जाता है यदि जिनवाणी श्रवण में विवेक नहीं रखा तो अनंत भव भ्रमण बढ़ जाता है! मछली भी पानी में रहती है और कमल भी! मीन पानी में इतनी आसक्ति है कि वह पानी के बिना छटपटाती है! और कमल निर्लिप्त रहता है। आसक्ति से परिग्रह बढ़ता है और परिग्रह को कर्म बंध होता है आनन्द कामदेव आदि श्रावक ने भी 500-800 स्वर्ण मुद्राएं रखी थी। राजा जनक जो अनासक्त भाव से राज करते थे एक सन्यासी ने उनकी परिक्षा लेनी चाही! राजा जनक ने कहा समय आन पर जबाब दूंगा! समय पर कही बात चोट करती है। जो समय का सदुपयोग करता है वह चतुर होता है जो चतुर्मास का पूरा लाभ उठा सकता है। अपने वार्षिक सपनों को साकार करने का समय है अपने शरीर का एवं चातुर्मास का पूरा लाभ उठा लो। संचालन मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने किया।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar