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चारित्र धर्म के दो धर्म- देश विरति, सर्व विरति: जयतिलक जी मरासा

चारित्र धर्म के दो धर्म- देश विरति, सर्व विरति: जयतिलक जी मरासा

जैन भवन रायपुरम में चातुर्मासार्थ विराजित पुज्य जयतिलक जी मरासा ने फरमाया कि चारित्र धर्म के दो धर्म- देश विरति, सर्व विरति। देशविरति: संसार में ग्रहस्थी श्रावक अपनी आवश्यकतानुसार मर्यादा कर शेष का त्याग कर देते हैं। नवां सामायिक व्रत का विवेचन :- द्रव्य शुद्धि, क्षेत्र शुद्धि, काल शुद्धि, भाव शुद्धि।

लोकिक या लोकोतर दोनों में शद्धि का आवश्यक स्थान है। शरीर शुद्धि भी आवश्यक है। सवेरे दंत शुद्धि करते हैं।वह भी आवश्यक है। उसमें भी आरंभ सारंभ होती है। वस्त्र शुद्धि-उसमें भी विराधना होती है। क्षेत्र शुद्धि:- घर की साफ सफाई जब लौकिक शुद्धि का ध्यान रखा जाता है किंतु भगवान ने जो शुद्धि बताई वो निरवध है। जहाँ, प्रमाद, कषाय आदि की संभावना हो तो वह आशुद्धि है। इन सबसे बच कर सामायिक करते है तो वह भाव शुद्धि। यहाँ तो कषाय से दूर रह कर समभाव रखते है यह से वह भाव शुद्धि है।

जब तक आत्मा में समभाव नहीं आता तब तक जीव को व्यवहार सामायिक करनी पड़ती है। सबसे पहले जीव ‘श्रृत सामायिक करता है! श्रवण से स्वाध्याय से जीव को भान होता है कि वह कहाँ गलत है अपने अशोभनीय आचरण का परिष्कार करता है, तब वह चौथे गुणस्थान को स्पर्श करता है, जैसे कृष्ण, श्रेणिक। जब उन्होंने सुनते सुनते धर्म का स्वरूप, आत्मस्वरूप को जाना तो भगवान की वाणी पर श्रद्धा हुई और जिनवानी को सत्य माना अंगीकार किया, प्रभावना करता है तब समकित को स्पर्श करता है।

राजा श्रेणिक भगवान महावीर से पुच्छा करता, सत्य मानता। हमें भी जिणवाणी को श्रवण कर व्यवहार सामायिक का लक्ष्य करना है तब पाँचवे गुणस्थान को स्पर्श करना है। भावों की शुद्धि करता है! आर्त रौद को निवार कर धर्म ध्यान में जाकर अपनी धर्मरुचि को जागृत करता है। मिथ्यात्व के घेरे को तोड़ता है। सामायिक में पहले मिथ्यात्व को तोड़ना है। उनका वन्दन

नमन स्तुति नहीं करना। सामायिक में जिनेश्वरदेव के मार्ग को ही सच्चा मानना और उनकी ही शरण ग्रहण करना। धर्ममय जीवन बनाने के लिए सांसारिक प्रवर्तीयों का त्याग करना है। द्रव्य, क्षेत्र, काल इन तीन में किंचित अशुदि रह जाएं तो क्षम्य है किंतु भावश्रुद्धि में दोष क्षम्य नहीं है। जीव भाव शुद्धि से आत्मा के वृन्द कर्मों की निर्जरा करता है।

सामायिक करते करते ही जीव को कर्म को तोड़ने की क्षमता आती है। सामायिक का नित्य अभ्यास आवश्यक है। सांसारिक की सारी प्रवृतियां आसान है किंतु मन रुपी घोड़े को वश में करना आसान नहीं है। भव भव तक साधना करनी पड़ती है। सम्यक सामायिक छोटे से बालक से वृद्ध, अर्जुनमाली जैसा हत्यारा भी कर सकता है। बस सामायिक समभाव आत्मा में आना चाहिए! अर्जुनमाली को छोटा सा सूत्र दिया समतावान बनो। बस भगवान के सूत्र को आत्मसात कर लिया तो छे मास में कर्म निर्जरा कर मोक्ष चले गये।

तत्व हर किसी का समझ नहीं आता और जिसे समय आ जाता है, वह जिनमार्ग से पीछे नहीं हटता।

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