चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा चारित्र के बिना आत्मकल्याण नहीं हो सकता। यह विश्वास मन में पैदा करो कि कदन्न पूरी तरह से आपके जीवन से दूर हो जाए।
सिद्धर्षि गणि कहते हैं कि ज्ञान और दर्शन की आराधना होगी तो जीवन की कुछ पीड़ा कम होगी और एक दिन चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से परिवार का विकल्प सामने आ गया जैसे मेरे कुटुम्ब का क्या होगा, अभी बच्चे छोटे हैं, परिपक्व नहीं है, उन्हें अनुभव नहीं है, कारवाँ सम्भाल नहीं पाएंगे, बेटी की शादी की चिंता है, पत्नी, भाई बहन और धन की चिंता है इन विकल्पों के कारण संसार में अटक गए।
इस प्रकार के विकल्प आपकी भावना को तोडऩे का कारण है। यह सब चारित्र मोहनीय कर्म के कारण है। चारित्र का पालन करना लोहे के चने चबाने, पर्वत को तोडऩे के समान है। ये विकल्प सब चारित्रिक आत्माओं के जीवन में आते हैं लेकिन जिनका वैराग्य अत्यंत दृढ़ है वे ही चारित्र धर्म का पालन कर सकते हैं। ये सब विकल्प उनको पार करना पड़ता है।
मोह तो ऐसे विकल्प पैदा कर लेंगे लेकिन संसार में घटनाक्रम और कटु अनुभव के कारण समझ सही बन जाती है। जब वैराग्य आता है, तब इस संसार से विश्वास उठ जाता है। कदन्न का त्याग कर चारित्र स्वीकार करने पर वह जीव सपुण्यक बन जाता है।
भूतकाल में जो आपने दिया है वह आपको मिलने वाला है। सिद्धर्षि कहते हैं ग्रंथ का अवलोकन करो न कि ग्रंथकार का। सद्गुरु भगवंत जानते हैं संसार में जीवों के जीवन में दुख है और इस परिस्थिति का मूल कारण कदन्न है।
उन्होंने कहा तप के अन्तराय को तोडऩा है तो तपस्वियों की अनुमोदना करो, उनकी सेवा करो। आचार्य की निश्रा में 150 आराधकों का प्रतर तप गतिमान है। यह तप कुल 56 दिनों का है जिसमें कुल 40 उपवास और 16 बियासना होंगे। इस तप की पूर्णाहुति 15 सितम्बर को होगी।