जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने पर्युषण के चतुर्थ दिवस पर चारित्र संयम पर बोलते हुए उन महान त्यागी तपस्वी आत्माओं को वंदन करते हुए चारित्र के तीन प्रकार बतलाए! मन वचन काया का संयम जीवन में अत्यावशक है! मन के संयम के अभाव में तरह तरह के रोग शोक जीवन में पनपते रहते है! जब व्यक्ति मन का गुलाम बन जाता है मन में हजारों इच्छाएं प्रतिदिन उभरती पणपति रहती है! उन तमाम इच्छाओ को इस जन्म में तो क्या कई जन्मो में भी पूर्ण नहीं की जा सकती! मन के मते चलने वालों का पतन ही हुआ है! मन संयम से जीवन का उथान कल्याण होता है! इसी के साथ वाणी का संयम भी आवश्यक है वाणी के चलते तो महाभारत हो गया! हम घर परिवार संघ समाज में शान्ति चाहते है तो हमेशा बोलने के पूर्व एक एक शब्द हृदय रूपी तराजू में तोल तोल के बोलना सीख लें! इसी से जुडा हुआ है अपनी काया का संयम अर्थात पांच इन्द्रियों को वश में रखना भी जरुरी है!
जो हमें पांच इन्द्रिया कान आँख नाक जीभ व शरीर के अंग प्राप्त हुए है उनका संयम भी जरुरी है! मुनि जी ने चरम शरीर जीवों अर्थात अंतिम शरीर धारी उन आत्माओं को जो उसी भव में मोक्ष प्राप्त कर लेती हैउनका वर्णन किया! चारित्र बोलता है राम कृष्ण महावीर नानक को हम नमन उनके चारित्र के कारण ही तो करते है! जीवन में तन धन कम ज्यादा हो तो उतना नुकसान नहीं होता किन्तु चारित्र खत्म होने पर जीवन ही एक प्रकार से खत्म सा हो जाता है! लकड़ी में घुन की तरह जीवन बेकार हो जाता है!गाँधी जी का स्मरण उनके चारित्र को लेकर ही किया जाता है!
जैन संत बेचरदास जी रायचंद्र जी से उन्होंने नियम शिक्षाएं ग्रहण की थी! सभा में साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा अंतगढ़ आगम के 90 जीवों का वर्णन करते हुए श्री कृष्ण के लघु भ्राता श्री गज सुकुमाल के मुनि बनने का व उसी दिन मोक्ष गति प्राप्त करने का वृ तांत श्रवण करा कर धर्म मार्ग में दृढ रहने की प्रेरणा प्रदान की! महामंत्री उमेश जैन ने कल के प्रवचन मे भगवान महावीर का जन्म उत्सव कार्यक्रम मे सभी को हार्दिक आमंत्रित किया