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ज्ञान वाणी

चारित्रात्माओं की वाणी से पूरे दिन गुंजायमान बना रहा ‘महाश्रमण समवसरण’

चारित्रात्माओं की वाणी से पूरे दिन गुंजायमान बना रहा ‘महाश्रमण समवसरण’
 माधावरम, चेन्नई (तमिलनाडु): जैन धर्म का महापर्व पर्युषण पर्वाधिराज। अष्टदिवसीय के आध्यात्मिक आयोजन का शुक्रवार को शिखर दिवस अर्थात् संवत्सरी महापर्व। आत्मशोधन के इस महापर्व का शुक्रवार को माधावरम स्थित आचार्यश्री महाश्रमण चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ से ऐसा आध्यात्मिक रंग चढ़ा कि पूरा वातावरण ही आध्यात्मिकता के रंग से रंगा नजर आने लगा। जैन शासन के इस शिखर दिवस (संवत्सरी) तेरापंथ के वर्तमान शिखरपुरुष महातपस्वी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सजे भव्य ठाठ को देखकर किसी महाकुम्भ जैसा महसूस हो रहा था। हो भी क्यों न जब ऐसे महातपस्वी का मंगल सन्निध्य प्राप्त हो फिर चींटी भी पहाड़ चढ़ जाए।
शुक्रवार को प्रातः लगभग आठ बजे से चारित्रात्माओं की गूंजती मंगलवाणी और उसके मध्य किसी अमृतवाणी की भांति मिश्रित हुई आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगलवाणी ने श्रद्धालुओं की मानों क्षुधा ही शांत कर दी और उन्हें अपनी-अपनी तपस्या में और पुष्ट होने का सबल सहारा बन गई।
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन प्रेरणा से दो दिनों में कुल 200 से अधिक श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया तो मानों ऐसा लगा कि तपस्या का ज्वार ही उमड़ आया हो। वहीं अब तक आचार्यश्री की सन्निधि में 30 मासखमण तप का भी प्रत्याख्यान हो चुका है। कई श्रद्धालु अभी भी अपनी-अपनी तपस्याओं में प्रवर्धमान बने हुए हैं। भौतिकता के इस दौड़ में आध्यात्मिकता की ऐसी लहर सिर्फ और सिर्फ महाश्रमण दरबार में ही शायद देखने को प्राप्त हो सकती है।
शुक्रवार को प्रातः से ही श्रद्धालुओं की अपार भीड़ माधावरम स्थिम आचार्यश्री महाश्रमण प्रवास स्थल उमड़ने लगी। आठ बजे तक भव्य और विशाल प्रवचन पंडाल ही नहीं, उसके आसपास स्थित सारे रास्ते, गलियारे और अन्य जगहों पर की गई व्यवस्थाओं में श्रद्धालुओं से जनाकीर्ण नजर आने लगा था। आचार्यश्री के आगमन से पूर्व साध्वी प्रियवंदाजी, साध्वी रचनाश्रीजी व साध्वी लब्धिश्रीजी ने श्रद्धालुओं को प्रेरित किया।
लगभग दस बजे के आसपास महातपस्वी तेरापंथ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ‘महाश्रमण समवसरण’ में पधारे तो पूरा पंडाल ही आसपास का समूचा वातावरण जयकारों से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री की मंगलवाणी से पूर्व मुख्यमुनि महावीरकुमारजी ने कहा कि भारतीय संस्कृति उत्सप्रिय है और आज का दिन आत्मा की शुद्धि की प्रेरणा प्रदान करने वाला है। इसलिए यह महापर्व का उल्लास और अधिक हो जाता है। उन्होंने ‘आत्मा की पोथी पढ़ने का मौका आया है’ का सुमधुर संगान किया।
महातपस्वी, शांतिदूत भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी द्वारा श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के 27वें भव में आगमन का वर्णन प्रारम्भ करते हुए कहा कि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में भगवान महावीर की आत्मा दसवें देवलोक से च्यूत हुई और वैशाली गणराज्य के ब्राह्मण कुंडग्राम गांव में निवासित ब्राह्मम ऋषभदत्त और देवानंदा के गर्भ में पधारे। इंद्र द्वारा इसे देखना और इसे एक देव से माध्यम से गर्भ का संहरण कराकर क्षत्रीय कुंडग्राम के राजा सिद्धार्थ की भार्या त्रिशला के गर्भ में स्थापित किया। इसके उपरान्त भगवान महावीर के जन्म लेने, उनके जीवन में अभय की साधना, उनके विवाह, दीक्षा, साधना, केवलज्ञान की प्राप्ति और फिर तीर्थंकर बनने और मोक्ष वरण की कथा का रोचक वर्णन आचार्यश्री ने किया।
आचार्यश्री ने कहा कि आदमी के जीवन में धर्म का कितना महत्त्व होता है। धर्म कालगत और आचरणगत भी होता है। आदमी के आचरण में अहिंसा, संयम और तप रहे तो वह आचरणगत धर्म होता है। पर्युषण एक ऐसा कालगत धर्म का समय जब धर्म की विशेष आराधना की जाती है। पर्युषण जैन श्वेताम्बर तेरापंथ का प्रतिष्ठित साधना का समय है। ध्यान, स्वाध्याय, जप, साधना, तपस्या, सामायिक आदि के माध्यम से आत्मा के कल्याण का विशेष प्रयास किया जाता है। उसमें भी आज का दिन संवत्सरी महापर्व शिखर दिवस के रूप में स्थापित है। वर्ष भर की बुराई को धोकर अपनी आत्मा को पावन बनाने वाला दिन है।
प्रथम चरण के मंगल प्रवचन के बाद आत तो मानों आचार्यश्री की पावन सन्निधि में जब तपस्याओं के प्रत्याख्यान का समय आया तो एक साथ सैंकड़ों लोग उसमें सभी बालक, किशोर, युवक, प्रौढ़ और वृद्ध आचार्यश्री के समक्ष मंच के समीप उपस्थित हुए। ऐसी संख्या देखकर ऐसा लगा कि महातपस्वी आचार्य को सभी तपस्याओं के सुमन अर्पित करने आए हों। आचार्यश्री ने सभी को उनकी धारणों के अनुसार तपस्या का प्रत्याख्यान करवाया। तपस्या के क्रम को देखा जाए तो गत दो दिनों के अंदर आचार्यश्री के समक्ष लगभग 200 से अधिक श्रद्धालुओं ने पन्द्रह, ग्यारह, दस, नौ, अठाई, सात, छह, पांच सहित अनेकों तपस्याओं के रूप में प्रत्याख्यान किया है। वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में महिलाओं में ग्यारहरंगी तो पुरुषों में नवरंगी की तपस्या भी गतिमान है। इस अवसर पर आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए भगवान महावीर के जीवनकाल में भी की गई तपस्याओं का वर्णन करते हुए कहा कि सभी तपस्वी साधुवाद के पात्र हैं क्योंकि तपस्या करना अपने आप में बड़ी बात होती है। इस प्रकार आचार्यश्री की अमृतवाणी का प्रवचन चरण सम्पन्न हुआ।
उसके उपरान्त साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। ‘आगम युग के प्रभावक आचार्य’ विषय पर मुनि सुधाकरकुमारजी, मुनि गौरवकुमारजी व मुनि सुधांशुकुमारजी तथा साध्वियों की ओर से साध्वी तन्मयप्रभाजी तथा साध्वी लब्धिश्रीजी ने प्रकाश डाला। साध्वी वैभवयशाजी ने जैन धर्म की प्रभावक साध्वियां के विषय में अपना वक्तव्य दिया।
सायं तीन बजे आचार्यश्री का पुनरागमन हुआ और आचार्यश्री ने आचार्य भिक्षु के जीवनवृत्त सहित तेरापंथ धर्मसंघ के पूर्वाचार्यों के जीवनवृत्त के माध्यम से श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान की। इसके उपरान्त मुनि अनेंकांतकुमारजी तथा मुनि धु्रवकुमारजी ने गीत का संगान किया। समस्त कार्यक्रमों का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया। इस प्रकार महाश्रमण दरबार में संवत्सरी के दिन देर रात तक आध्यात्मिकता का अलौकिक आलोक छाया हुआ था और उस आलोक से स्वयं को आलोकित कर रहे थे दूर-दूर से पहुंचे हजारों-हजारों श्रद्धालु।

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