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चातुर्मास हमारे लिए एक विशिष्ट पर्व है: आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

चातुर्मास हमारे लिए एक विशिष्ट पर्व है: आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

किलपाॅक में रंगनाथन एवेन्यू स्थित एससी शाह भवन में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा चातुर्मास हमारे लिए एक विशिष्ट पर्व है । यह आराधक आत्माओं के लिए एक अच्छा अवसर है । 

चातुर्मास में गुरु की निश्रा में तीन परिवर्तन दशा, दिशा और दृष्टि आ जाए तो समझना यह मानव भव हमारे लिए सफल है ।

आराधना, अनुष्ठान व तपस्या के पीछे हमारा एक लक्ष्य होना चाहिए कि हम इस भव को सफल बनाए । एक बात निश्चित है कि सद्गुरु की निश्रा मिले बिना दशा, दिशा और दृष्टि नहीं बदल सकती ।

उन्होंने कहा वाल्मीकि ऋषि एक डाकू थे । सद्गुरु के योग से उन्होंने दशा, दिशा और दृष्टि बदली और रामायण जैसे ग्रंथ की रचना कर डाली । राजा कुमारपाल जीव दया पालक थे । उन्होंने सद्गुरु की निश्रा के प्रभाव से पुण्यार्जन किया और अगली चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर के प्रथम गणधर बनने का सौभाग्य पाया । पुराने जमाने में लोग गाय, भैंस को परिवार का हिस्सा मानते थे । यह हमारी संस्कृति थी ।
आचार्य ने कहा अनुकंपा धर्म का प्राण है । जहां अनुकंपा नहीं है धर्म का पालन, श्रद्धा संभव नहीं है । श्रावक वही कहलाता है जिसमें अनुकंपा की भावना हो । दूसरों के दुख को देखकर हमारे दिल में कंपन पैदा हो जाए वही अनुकंपा है ।
उन्होंने कहा हमें इस चातुर्मास को अलंकारी बनाने के लिए व्रत और नियमों के प्रति प्रतिबद्ध होना है। अनंत भगवान ने जो आराधनाएं बताई है उसका अनुकरण करना है । सामायिक, पौषध, प्रतिक्रमण, स्नात्र पूजा, ब्रहम्चार्य का पालन, क्रिया, दया, दान विशेष रुप से करना चाहिए ।
उन्होंने कहा  जिस प्रकार भाव के बिना भक्ति की कीमत नहीं है उसी प्रकार श्रावक की शोभा विरति में  है । पूरे जीवन के लिए न सही, चार महिने के लिए कुछ छोटे बड़े नियम लेना चाहिए । बिना बंधन कोई चीज इस दुनिया में नहीं हो सकती । विरति का बंधन मोह के बंधन से मुक्ति पाने  के लिए जरूरी है ।
आचार्य ने कहा श्रावक की तीन पूजा है सुबह वासक्षेप पूजा, अष्ट प्रकारी पूजा और सांध्य आरती व मंगल ।  हमें प्रभु की प्रतिमा में अपनी आत्मा का दर्शन करना है । मुनि तीर्थ हंसविजय ने चातुर्मास में आयोजित होने वाले कार्यक्रम की सूचना दी । उन्होंने बताया 21 जुलाई को शक्रस्तव पूजा का अनुष्ठान होगा ।

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