Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

चातुर्मास एक आध्यात्मिक पर्व है: जयतिलक मुनि जी

चातुर्मास एक आध्यात्मिक पर्व है: जयतिलक मुनि जी

रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक मुनि जी ने प्रवचन में फ़रमाया कि आज का दिन चतुर्मासिक अंतिम दिवस है! यह एक आध्यात्मिक पर्व है। इन दिनों में संसार प्रपंच से निवृत होकर आत्म चिन्तन करने का दिवस है! जो सजग साधक है वह इन दिनों में पराक्रम फोड़ते हैं। जागृति होती है।

यदि कोई साधक जबरदस्ती ही सहीं स्थानक में आते है तो उन्हें कुछ न कुछ लाभ तो अवश्य होता है! आज का दिवस धर्म के उत्थान का दिवस है। जो धर्म अवसान की ओर जा रहा था उसको अमृतपान करा के उत्थान करने वाले वीर लोकाशाह का जन्म दिवस है! भगवान की वाणी है 21000 वर्ष तक यह धर्म चलेगा। जब जब धर्म की हानि होगी ऐसे महापुरूष अवतरित हो धर्म का दीपायेगा!

जब उन्होंने आगम को पढा तो उन्हें विचार आया कि यह प्रति कुछ बताती है और आचरण कुछ और है! उन्होंने दो प्रति लिखना प्रारंभ कर दिया! नींद का त्याग कर दिया। एक प्रति यति जी के लिए दिन में लिखते और धर्म की प्रभावना करने दूसरी प्रति रात को लिखते, जब यह बात यति जी को पता चली तो उन्हें नुकसान पहुँचाने की बहुत कोशिश की। वीर लोकाशाह अन्य स्थान चले गये! दूसरे राज्य में नौकरी करने लगे। वहाँ का राजकुमार राजा का वध कर स्वयं राजा बन गया। इस बात से उन्हें विरक्त हो गई कि माता पिता का स्थान सबसे ऊंचा है जिन्होंने जन्म दिया! पालन पोषण किया उन्ही का वध कर दिया। माता पिता अपनी संतान के लिए हर संभव प्रयास करते है!

जब माता पिता का आर्शीवाद हो तो संसार की हर सफलता कदम चूमती है। माता पिता की सदाकाल भक्ति करते रहो! माता पिता का ऋण कभी-चुकाया नहीं जा सकता है! उपकारी पर अपकार करने वाला हर जगह सुख पाता है। वह स्वयं के लिए खाई खोद रहा है। यदि वास्तव में संसार में जब पान है तो माता पिता की सेवा करो! जैसे देवकी के आंखों को आँसू पौछने श्री कृष्ण ने तेले का तप किया। हरिणमैषी देव उपस्थित होकर जिज्ञासा का समाधान किया। श्री कृष्ण ने माता का शोक मिटाया।

तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव जैसे जीव भी माँ के चरणों में समर्पित रहते है। माता पिता के बाद ही गुरु का स्थान है! माता पिता के प्रति अहो भाव होना चाहिए किंतु उस राजकुमार ने उपकारी पर अपकार कर दिया। यह बात में वीर लोकाशाह को झटका लगा उन्होंने सारे वैभव का छोड़‌कर दीक्षा अंगिकार कर ली उनके तप तेज ज्ञान से प्रभावित होकार अनेक भव्य आत्मा उनसे दीक्षित हुई। तब से बाईस सम्प्रदाय का अवतरण हुआ। उन्हें भोजन में जहर दे दिया गया किंतु वे निडर रहे अंतिम समय तक शुद्ध धर्म क प्रभावना की ! उनका जैन सम्प्रदाय पर बहुत बडा उपकार है!

आज चातुर्मासिक अंतिम दिवस है!आप चातुर्मास से मुक्त हो रहे हैं धर्म से नहीं। भगवान के धर्म को कभी मत भूलना उसमें वृद्धि करना। आपके संघ में आपकी हर आवश्यकता की पूर्ति रीति से हुई।

संचालन मंत्री नरेंद्र मरलेचा ने किया। यह जानकारी ज्ञानचंद कोठारी ने दी।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar