कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में अमृत धारा बरस रही है। जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि प्रभु महावीर स्वामी सुबाहु कुमार का पूर्व भव बता रहे हैं। हस्तीनापुर में सुमुख गाथापति रहता था, बड़ा ही धर्मनिष्ठ उदार हदयी था। एक बार आचार्य श्री धर्मघोष नाम के मुनिराज आपने 500 शिष्यों के साथ पधारे उनके अंतेवासी शिष्य – अंतेवासी अर्थात् हमेशा पास रहकर के सेवा करने वाले जो शिष्य विनयवान होता है। वह गुरु के हृदय में उतर जाता है गुरु के इशारों को समझने वाला होता है। अंतेवासी शिष्य सुदत अणगार जो मासखमण के तपस्वी थे पारणा लेने के लिए हस्तिनापुर नगर में ऊंच-नीच मध्यम कुलों में होते हुवे सुमुख गाथा पति के यहां पधारे।
सुमुख ने जैसे ही मुनि को आते हुए देखा तो सिंहासन से उठ कर सामने गये वंदन करके उन्हें रसोई घर में ले गये और उदार भाव से दान देने लगे त्रिकरण शुद्धि से भाव से निष्कफटता से दान देते हैं। गुरु के सामने दिल साफ रहना चाहिये मन में कपट का भाव नहीं रहना चाहिये कहा भी है। गुरु से कपट, मित्र से चोरी, के हो अंधा के हो कोढ़ी -अथार्थ गुरु से कपट करना, छिपाना, बताना नहीं , डॉक्टर के पास जाते हैं तब जो भी अंदरूनी बीमारी होती है बताना चाहिये तभी सही इलाज हो सकता – वकील से केस के बारे में सारी जानकारी देंगे तभी केस में जीत सकते हैं – ऑडिटर को सारा हिसाब-किताब बताएंगे तभी तो सही आडिट कर सकते हैं। जो गुरु से छिपाकर कपट युक्त कार्य करते हैं और मित्र के साथ चोरी का व्यवहार करते हैं। ऐसा व्यक्ति या तो अंधा होता है -या फिर उसके शरीर में कोढ़ रोग पैदा हो जाता है। इसलिये गुरु के साथ सरलता सह्यदयता का व्यवहार करना चाहिये। जिससे हमारी आत्मा पाप कर्म से बच जाये हम भले ही यहां गुरु से छिपाकर काम कर ले पर जब उदय काल में आता है तब रोना पड़ता है। सुमुख गथापति ने बहुत ही श्रद्धा व भक्ति से आहार दान दिया तीन करण से शुद्ध आहार था।
*( 1 ) देने वाला शुद्ध*
*( 2 ) देने की वस्तु ( आहार ) भी शुद्ध*
*( 3 ) लेने वाले भी शुद्ध था*
इस प्रकार चित वित्त पात्र त्रिकरण शुद्घ जहाँ होते हैं वहां आत्मा का कल्याण निश्चित है दोनों का देने वाला व लेने वाले की मुक्ति हो जाती है।