कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि अंतगढ़ सूत्र में उन महान पुण्यशाली आत्माओं का वर्णन किया है जिन्होंने भगवान की अमृतमयी वाणी सुनकर संसार को त्याग दिया और आत्म साधना के पथ पर अग्रसर हो गये संसार त्याग कर मुनिधर्म अंगीकार किया।
फिर पीछे मुड़कर भी नहीं देखा कि परिवार क्या कर रहा है उनका संसार कैसा चल रहा है मोह माया राग द्वेष छोड़े तभी सही रूप में मुनि बन सकते जहाँ मेरा तेरा है। एक परिवार छोड़ा पर गांव-गांव में परिवार बढ़ा लिया ये मेरे श्रावक है मेरे संप्रदाय के हैं। ऐसे भाव जहां होते हैं वहाँ आत्मा का कल्याण नहीं राग द्वेष संसार में परिभ्रमण कराते हैं।
भगवान महावीर स्वामी से गौतम स्वामी ने पूछा प्रभु मेरे बाद दीक्षा लेने वाले किसान नौकर चपरासी थे। वो भी केवली हो गये और मैं अभी तक ऐसे ही बैठा हूं मैं आपका प्रथम शिष्य कहलाता हूं। आपका लाडला भी हूं प्रभु ने कहा गौतम केवल ज्ञान पाने के लिये तुम मुझे छोड़ दो तब गौतम स्वामी बोले प्रभु मैं सब कुछ छोड़ सकता हूं पर आपको नहीं। आपको छोडू और केवल ज्ञान पाउँ ऐसे ज्ञान की मुझे आवश्यकता नहीं।
जरा सोचिये भगवान स्वयं गौतम को केवल ज्ञान नहीं दे सकते तो हम आपको मोक्ष कहां से दिलायेगे न हम और न संप्रदाय दिला सकती है। आपकी अपनी करनी से ज्ञान प्राप्त कर सकते जहां मैं मेरा मेरे गुरु मेरी संप्रदाय के भाव है तो आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता। क्योंकि जहां राग है और द्वेष है तो कोई भी तीर्थंकर भी मुक्ति नहीं दिला सकते।
अपने स्वयं से पुरुषार्थ करते हुवे राग द्वेष मोह माया को छोड़ समता के राजमार्ग पर चलेंगे तभी हम आत्म साधना करने में सफल होंगे। हमारी निंद से हम अभी जागृत नहीं हुवे 5 मिनट में चाय तैयार हो जाती है। जैसीे ही पानी गरम होता है चाय पत्ती डालते हैं। उसमें से सुगंध आनी शुरू हो जाती ओनली 5 मिनट में – पर हम भगवान की वाणी कब से सुना रहे हैं तो आपके भावों में उबाल आया नहीं – जब तक भावों में उबाल नहीं आयेगा तब धर्म क्रिया साधना जप तप आदि कुछ भी करने में आनंद नही आयेगा।