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ज्ञान वाणी

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा: वीरेन्द्र मुनि

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा बरस रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आर्य सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य जंबू स्वामी के पूछने पर कहा था कि, भगवान महावीर स्वामी से जैसा सुना है वैसा ही मैं तुम्हें सुना रहा हूं। सुखविपाक के माध्यम से तीसरे अध्ययन का वर्णन सुनो।

हे जम्बू वीरपुर नामक नगर था, वहां पर मनोरम नामक एक बगीचा था, वहां के राजा वीर कृष्ण मित्र थे, श्रीदेवी रानी थी उनके सुजात कुमार नामक पुत्र था। सुबाहू कुमार की तरह विद्या अध्ययन होने पर बलश्री प्रमुख 500 श्रेष्ठ राज कन्याओं के साथ विवाह हुआ। पांचों इंद्रियों के सुख भोग में तलिन बने हुवे थे। ऐसे में भगवान महावीर स्वामी पधारे धर्म श्रवण के साथ श्रावक के 12 व्रतों को ग्रहण किया। गौतम स्वामी के पृच्छा करने पर भगवान महावीर ने सुजातकुमार का पूर्व भव बताते हुवे कहा – इषुकार नगर में ऋषभदत्त गाथापति रहता था, उसने पुष्पदंत अणगार को निर्दोष शुभ भावना से दान दिया। जिससे पुण्य के बंध होने से यहां सुजात कुमार बनकर सुबाहूकुमार की तरह दीक्षा लेकर के महाविदेहक्षेत्र से सिद्ध बुद्ध मुक्त होंगे।

चौथेे अध्ययन में बताते हुए कहा कि – विजयपुर नगर में नंदनवन बगीचा उसमें अशोक नामक यक्ष का मंदिर था – वासवदत्त राजा कृष्णा देवी रानी के पुत्र सुवासवकुमार था। भद्रा प्रमुख 500 कन्याओं के साथ विवाह हुआ। भगवान महावीर की वाणी सुनकर के श्रावक 12 व्रत धारण किये। गौतम स्वामी के पूछने पर प्रभु बोले कौशाम्बी नगरी में धनपाल राजा ने वैश्रमणभद्र अणगार को निर्दोष आहार दान देकर के मनुष्य आयु का बंध बाँधा।

सुबाहूकुमार की तरह ही दीक्षा लेकर के सिद्ध गति को प्राप्त हुवे

वैसे ही पांचवे अध्ययन में सौगंधी का नगरी में नीला शोक नाम का उद्यानसुकाल नाम के यक्ष का मंदिर था। अप्रतिहत राजा श्रीकृष्णा पटरानी थी। उनके एक पुत्र महा चंद्रकुमार उसकी अर्हदता नाम की पत्नी थी। जिन दास उनका पुत्र था। किसी समय भगवान महावीर स्वामी के आने पर 12 व्रतों को ग्रहण किया।

गौतम स्वामी ने पूर्व भव का पूछा, उत्तर में भगवान ने कहा – माध्यमिका नाम की नगरी में मेघरथनामक राजा थे, उन्होंने सुधर्मा अणगार को आहार दान देने से रिद्धि सिद्धि प्राप्त हुई है, दीक्षा ले करके इसी भव में मोक्ष में जाएंगे।

छठे अध्ययन में कनकपुर नगर में स्वेताशोक नाम का बगीचा, वीरभद्र नामक यक्ष का मंदिर राजा प्रिय चंद्र रानी सुभद्रा वैश्रमण नाम का युवराज पुत्र था। श्रीदेवी आदि 500 कन्याओं के साथ विवाह हुआ। भगवान महावीर स्वामी से युवराज के पुत्र धनपति कुमार प्रवचन सुनकर 12 व्रत धारण किये। गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान ने कहा- धनपति कुमार पूर्व भव में मणिचयिका नगरी का राजा था, उसने संभूति विजयमुनि को आहार दान देने से इसी भव में मोक्ष जाएंगे।

सातवे अध्ययन में महापुर नगर में रक्ताशोक नाम का बगीचा था। रक्तपाद यक्ष का यक्षायतन था बल राजा राज करते हैं। सुभद्रा देवी रानी के महाबल नाम के युवराज था। रक्तवती आदि 500 कन्याओं के साथ शादी हुई थी। भगवान महावीर स्वामी का प्रवचन सुनकर के श्रावक के 12 व्रत लिये। गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान महावीर ने कहा मणिपुर नामक नगर था। नागदत गाथापति था, उसने इंद्रदत नाम के अणगार को सुपात्र दान देकर प्रति लाबित किया उसके प्रभाव से जन्म मरण की श्रृंखला समाप्त करके इसी भव में मोक्ष में जाएंगे।

आठवेंअध्ययन में सुघोष नगर में अर्जुन राजा तत्ववती रानी भद्रनंदी युवराज थे। वहां देवरमण नाम का बगीचा था। वीरसेन नाम का यक्ष मंदिर था। युवराज का विवाह श्रीदेवी आदि 500 श्रेष्ठ कन्याओं के साथ हुआ। भगवान महावीर स्वामी की वाणी सुनकर भद्रनन्दी कुमार ने 12 व्रत धारण कि पूर्व भव का पूछने पर भगवान ने कहा – महाघोष नामक नगर था। धर्म घोष नाम के गाथापति थे उसने धर्म सिंह अणगार को आहार देकर के कर्मों की निर्जरा की और भद्रनन्दी ने दीक्षा लेकर कर्म काटकर इसी भव में मोक्ष पद को प्राप्त करेंगे।

नवमें अध्ययन में चंपा नाम की नगरी में पूर्ण भद्र नामक यक्ष का मंदिर था। राजा दत्त व रानी रक्तवती थी। उनके पुत्र महाचंद्र की शादी श्रीकांता आदि 500 कन्याओं के साथ हुआ। भगवान महावीर स्वामी का प्रवचन सुनकर के श्रावक के 12 व्रत अंगीकार किया पूर्व भव के विषय में कहा कि चिकित्सिका नगरी में जित शत्रु राजा ने धर्मवीर अणगार को आहार दान देकर संसार घटाया। इसी भव में मोक्ष पद को प्राप्त करेंगे।

दसवें अध्ययन में साकेत नगर में उत्तरकुरु बगीचा था। पाशमृग नामक यक्ष का मंदिर था। मित्रनंदी राजा श्री कांता रानी वरदत्त नाम का युवराज था। भगवान महावीर स्वामी की देशना सुनकर के श्रावक धर्म अंगीकार किया। बर सेना आदि 500 कन्याओं के साथ विवाह हुआ था। पूर्व भव की पृछा करने पर भगवान ने कहा कि शतद्वार नाम का नगर था। वहां विमल वाहन राजा थे उन्होंने धर्म रूचि अणगार को सुपात्र दान देकर के प्रतिलाभित किया इसी भव में मोक्ष में जायेगे।

इस प्रकार सुख विपाक सूत्र में जैसा भगवान ने फरमाया है वैसा ही मैंने तुम्हें सुनाया है। सभी आत्माये दान देकर के मानवीय सुखों को प्राप्त करके अपने भोगावली कर्म अनुसार सुख भोग करके सर्व कर्मों को काटकर के मोक्ष में गये! अहा – क्या सुपात्र दान की महिमा है इस शास्त्र में, अतः हर मनुष्य को इस शास्त्र का पठन पाठन करना चाहिये! महान आत्माओं के जीवन चरित्र पढ़ सुनकर के हम अपने कर्मों को नष्ट कर सकते हैं, शास्त्र को विधि सहित भगवान की गुरु की आज्ञा लेकर के ही स्वाध्याय पाठ आदि करना चाहिये।

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