कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा बरस रही है। जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि सुबाहूकुमारजी ने धर्म चिंतन करते हुवे भावना भाई की प्रभु महावीर स्वामी यहां पधारे तो भगवान के चरणों में दीक्षा धारण करूँ – ये भावना उन्होंने ऊपरी दिल से नहीं और न झूठी भावना भाई – सच्चे हृदय से चिंतन हुआ था। तो जिस प्रकार फोन नंबर डायल करते ही जैसे सामने वाले का फोन घनघना उठता है वैसे ही सुबाहूकुमार की अंतर आत्मा की आवाज प्रभु महावीर के ह्रदय तक पहुंच गई क्योंकि प्रभु महावीर का नेटवर्क ( केवल ज्ञान) के सामने 4G 5G भले ही 100 G भी कुछ भी नहीं है।
दूसरे दिन से ही प्रभु महावीर स्वामी ने हस्ती शिर्षनगर की ओर विहार कर दिया और धर्म का उद्योत करते हुवे सुबाहूकुमार की भावना को फलीभूत करने के लिये नगर के बाहर उद्यान में अनुग्रह ( आज्ञा ) लेकर विराजमान हुवे हैं। नगर की जनता प्रभु के पधारने के समाचार मिलते ही दर्शन वंदन करने के लिये दौड़ पड़े हैं। सुबाहू कुमार भी प्रभु के पधारने का श्रवण करके दर्शन वंदन व प्रभु की वाणी सुनने के लिए लालायित हो गये सच्चे मन से की गई प्रार्थना सफल होती है।
परंतु आज हम देखते झूठी बातें करने वालों का कोई भी विश्वास नहीं करेंगे और झूठा आदमी सौगंध खाता है पर सत्यवादी को सौगन खाने की जरूरत नहीं होती, झूठा व्यक्ति मां – बाप की पति पत्नी की आपस सौगन खाते हैं, गोल्डन की परीक्षा होती है तांबे पीतल की नहीं सोने को आग में डालते हैं।
परीक्षण के लिये घिसकर भी जांच होती है पर तांबे पीतल की जांच नहीं होती और न सौगन खाने की जरूरत होती है। सुबाहू कुमारजी प्रभु महावीर स्वामी के दर्शन वंदन व भगवान की वाणी श्रवण करने के लिये भगवान के समोशरण में पहुंच गये।
भक्त भगवान को पुकारते है तो भगवान को आना ही पड़ता है चंदनबाला ने पुकारा तो भगवान महावीर पुनः लौटकर आये थे। 20 वें तीर्थंकर प्रभु मुनिसुव्रत स्वामी को पुकारा था भडूच शहर में एक तिर्यंच भक्त ने तो भगवान ने सैकडों मिल का रास्ता तय करके अपने भक्त अश्व घोड़े को बोध दे करके उसकी आत्मा का कल्याण किया था। इसी प्रकार प्रभु महावीर स्वामी के लिये सच्चे हृदय से जो आवाज निकली है सुबाहू कुमार की तो प्रभु भी उसका कल्याण करने के लिये पधार गये हैं।