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ज्ञान वाणी

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता: वीरेन्द्र मुनि

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज ज्ञान पंचमी है, जिसे लाभ पांचम भी कहते है।

आज ज्ञान पूजा करेंगे ज्ञान पूजा का मतलब सिर्फ ग्रंथ – या शास्त्र की पुस्तक रखकर उसकी पूजा करना ही नही परन्तु उसे पढ़ना सुनना, पुस्तकों के ठोकर न लगे, क्योंकि पुस्तक के पांव लगाने से ज्ञान की आशातना होती है, और शास्त्र पर चावल आदि चढ़ाकर छोड़ देने से कभी कभी चूहे खाने के लिये आते है।

चावल के साथ पुस्तक को भी काट देते है तो ज्ञान की आशातना होती है इसलिये शास्त्र की पूजा करते हुवे पूरा ध्यान रखना है -ज्ञानावर्णीय कर्म काट ने के लिये पूजा करते है न कि कर्म बांधने के लिये , पुस्तक के पन्ने नही फाड़ना ज्ञान देने वालो का स्वागत सम्मान करना चाहिये उनका कभी भी अपमान नही करना चाहिये – जिससे हमने एक अक्षर का भी ज्ञान सीखा है।

वह हमारे लिये पूजनीय वंदनीय होते है। उनकी अवज्ञा अशातना नही करना चाहिये। ज्ञान पढ़ना और दूसरे पढने वालो को सहयोग देना सेवा करना जिससे हमारे कर्मो की निर्जरा होवे। ज्ञानी का विनय करना ज्ञान जैसे जैसे बढ़ता है वैसे वैसे विनय विवेक भी हमारे में बढ़ना चाहिये।

ज्ञान के साथ विनय होने से सोने में सुहागा हो जाता और जहाँ ज्ञान आने से अविनय अभिमान आता है वहाँ पर कभी कभी ज्ञान विलुप्त भी हो जाता है ( 1 ) ज्ञान के साधन शास्त्र पुस्तकें ज्ञान दाता गुरु आदि के प्रति सदा आदर भाव रखिये ( 2 ) ज्ञान प्राप्त करने के लिये विनय शिल बनिए जिज्ञासु बन नया ज्ञान शिखने की ललक उमंग रखिये और जहाँ से जो भी अछी बात जानने को मिले उसे तुरंत ग्रहण करें ( 3 ) ज्ञान की प्रभावना करने में दूसरों को ज्ञान सिखाने में ज्ञान के साधनों का प्रचार प्रसार करने में अपने पुरुषार्थ और अपनी लक्ष्मी का उपयोग करते रहे जिस समाज में ज्ञान की पूजा ज्ञान का बहुमान व ज्ञानी जनों का सन्मान करने की महान परंपरा हमारी संस्कृति में है वह समाज अज्ञान के अंधकार में विलीन नही होता है।

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