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ज्ञान वाणी

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता: वीरेन्द्र मुनि

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा मे संबोधन करते हुवे कहा कि श्रीपालजी अकेले ही चल पड़े चलते हुए जंगल पहाड़ गिरी कंदरा पार करते हुए एक पहाड़ी पर एक साधक विद्या सिद्ध करने की कोशिश कर रहा था, पर नहीं हो पा रही था।

उससे श्रीपाल ने कहा अभी मेरे सामने करो मैं तुम्हारे लिये साधक हूं सिद्ध पुरुष ने वैसा ही किया तुरंत विद्या सिद्ध हो गई। उसने प्रसन्न होकर के दो विद्याए (1 ) जलतरणी ( 2 ) पर शस्त्र हरणी दो विद्याएँ श्रीपालजी को भेंट की श्रीपालजी ने अपने कदम आगे बढ़ाए। आगे जंगल के एक पहाड़ी पर एक व्यक्ति कोई प्रयोग कर रहा था पर उससे हो नहीं पा रहा था।

श्रीपालजी को देख करके वह बोला है भाग्यवान क्या मेरे कार्य में सहयोग बन करके इस स्वर्ण सिद्धि को प्राप्त कर सकते हैं क्या , श्रीपाल जी ने कहा आओ क्यों नहीं अवश्यक। श्रीपाल उसकी मेहनत में रंगलाये और स्वर्ण सिद्ध रस तैयार हो गया सोने का ढेर हो गया। उसने कहा आप यह स्वर्ण स्वीकार करो मुझे प्रसन्ता होगी श्रीपाल ने कहा मुझे नही चाहिये बहुत मनुहार के बाद थोड़ा सा ही जबरदस्ती लेना पड़ा। श्रीपालजी चलते चलते भडूच शहर में पहुंच गये बाजार में कपड़ा अशस्त्र शास्त्र आदि खरीदकर के नगर के बाहर एक बगीचे में सो गये। उधर कौशाम्बी पुर में नामी साहूकार नगर सेठ थे, नाम था धवल सेठ।

एक बार धबलसेठ पॉच सौ जहाज सामान व कई व्यापारियों को साथ लेकर के परदेश जाने के लिए रवाना हुवे। जहाज भडूच आकर अटक गये। बपा सहुत कोशिश के बाद भी टस से मस नहीं हुवे। तब ज्योतिष पंडित के कहने पर समुद्र को नरबलि देने के लिये राजा ने 32 लक्षण वाले सुंदर अभंग शरीर वाले को ढूंढने के लिये सैनिकों को भेजा खोजते खोजते बगीचे में सोये हुवे श्रीपाल के पास पहुंच गये।

आवाज सुन करके आंखें खोल कर देखा तो सामने सैनिक खड़े थे पूछने पर कहा राजा की आज्ञा से आपको लेने आए हैं। श्री पाल ने सोचा देखे तकदीर में क्या लिखा है। जिसको अपनी तकदीर पर विश्वास नहीं होता वह रोता रहता है। आज शनिवार है शनिश्वर की दशा के लिए राजस्थान मेंडाकोत आते हैं।

लोटे में सरसों का तेल भरा होता है उसमें झांकने के लिये कहते हैं – और नही झांको तो नाखो तो सही – यानी पैसा डालने का – तेल में देखने से पैसा डालने से शनि महाराज प्रसन्न हो जाते हैं तो किस्मत का ताला खोल देते हैं और नाराज हो जाए तो बर्बाद भी कर देते हैं। सैनिक श्रीपालजी को ले करके सेठ के पास पहुंचे सेठ कहां पूजा आदि करके तैयार करो बली के लिये।

श्रीपाल ने पूछा सेठ तुम्हारी क्या इच्छा है क्या मनुष्य को मारने से तुम्हारे काम सफल हो जाएंगे। सेठ के आदमी बलि देने के लिये तैयार हुवे तब श्रीपालजी ने अपनी शक्ति दिखाई तब सब अपनी जान बचाकर भागे सेठ भी चरणों में गिरकर माफी मांगने लगा तब श्रीपाल ने कहा – चलो तुम्हारे जहाज देखता हूं। जहाज के पास पहुंच करके नवपद का जाप करके एक लात मारी -पांव की ठोकर से सारे जहाज चल पड़े।

सेठ ने अपने साथ काम पर रहने को कहा – उत्तर में साल की तनखा एक करोड़ सोना मोहर दे तो नौकरी क्रू। सेठ के मना करने पर वैसे ही परदेश जाने के लिए जहाज का किराया एक महीने की सो मोहरे ठहरा करके बैठे – जहाज चलते हुए बबरकोट के बंदरगाह पर पहुंचे। लोग इंधन पानी लेने के लिए इधर-उधर तलाश कर रहे थे ,तब चुंगी नाका के अधिकारी लोग धवल सेठ अभिमान के नशे में चूर उन्होंने अधिकारियों को धक्का देकरके भगा दिया।

वे लोग बबर नरेश महाकाल राजा के पास गये और शिकायत की राजा ने चढ़ाई करके सेठ के सैनिक को भगा दिया। सारे अपने सैनिक के पहरे में सौंप करके राजाजी अपने राज महल की ओर जाने लगे। तब श्रीपाल जी सेठ के पास आकर के साता पूछने लगे सेठ ने कवर सा जले पर नमक मत लगाओ कंवर जी बोले अगर एक करोड़ दे देते तो आज यह स्थिति नहीं बनती।

सेठ ने कहा अभी बचा लो 250 जहाज तुम्हारे ,तब श्रीपालजी ने जाते हुवे राजा से कहा ,कम से कम हमारे हाथ का कलेवा ( नाश्ता ) करके जाओ राजा ने देखा नवयुवक सुंदर अभी दूध के दांत थी ,नहीं टूटे और मुझे ललकार रहा राजा ने श्रीपालजी पर अस्त्र शस्त्र बरसाना शुरू किया। श्रीपालजी ने जो अपने हाथ दिखाये, धनुष्य की टंकार से राजा की सेना तीतिर -बितर हो गई और राजा को बंदी बनाकर सेठ के पास लेकर आये। सेठ के बंधन खोल दिये, सेठ ने हाथों में तलवार उठाकर राजा को मारने चला, श्रीपाल ने कहा अपनी बहादुरी रहने दो राजा को खोल देता हूं तब तलवार चलाओ सेठ शास्त्र में 9 जनों को मारने का मना किया है।

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